________________ आगम निबंधमाला रोकने वाला नहीं, रत्नों से भंडार भरे हैं / आज अमूल्य अवसर है बेड़ा पार करलो / ऐसी मंगल वाणी राजा की सुनकर, उसे सुकन मान कर, चोर खुश-खुश हो गये / राज भण्डार के पास पहुँचे / पहरेदारों को नींद आ रही थी। कोई उन्हें रोकने वाला नहीं मिला। मंत्रित जल डाल कर ताले तोड़ अंदर प्रवेश किया, घूम-घूम कर सारा धन देखा। तीन बड़ी पेटियाँ जेवरात की भरी देखी दो पेटियाँ लेकर दोनों नौकरों के शिर पर रखवा दी / बाकी सारा धन और खुले दरवाजे छोडकर निकल गये / मार्ग में पुनः गस्त लगाते हुए वही राजा मिले, पूछताछ की, राजा ने देख लिया कि इतने जल्दी राजभंडार से या अन्य कहीं से भी चोरी करके नहीं आ सकते / सच्चा उत्तर देने पर राजा समझ गया कि ये वे ही तीनों खोपड़ी है / इन दिमांग फैलों से बातें करके व्यर्थ ही समय गंवाँना है / ऐसा मन में सोच कर राजा ने कह दियाजाओ भाइयों ! खूब माल उड़ावो चोरी का और मौज करो / चोर ने सत्य बोलने का फल देख लिया। राजा रात भर घूमता रहा, कहीं भी चोर नहीं मिला / सुबह होते ही खबर मिली कि राजभंडर के ताले टूट गये हैं / पहरेदारों एवं खजांचियों ने अपनी सारी वार्ता राजा को सुना दी। दो पेटी की जगह तीन पेटी की चोरी होने की बात जाहिर कर दी / राजा मन ही मन पछताने लगा कि सत्य बोल कर चोर मुझे भी ठग गया / समय पर मंत्रीश्वर आए / राजा को चिंतातुर देख कर कारण पूछा / राजा ने अपनी रात की सारी घटना सुना दी और कहा कि अब कोई ऐसी अक्ल लगावो कि जिससे चोर सन्मुख आजाय / ... . .. मंत्री ने उपाय सोच कर कहा कि नगर के सभी लोगों को उपवन में बुलाओ। फिर एक दरवाजे से सभी निकले और उन्हें पूछा जाय कि क्या व्यापार करते हो / नगर में घोषणा करवादी गई सभी लोग आ गये / मणिसागर भी सजधज कर आ गया / एक ए क करते हुए मणिसागर का नंबर लगा। - राजा उसे देख कर बड़ा प्रेम धर पूछने लगा कि श्रेष्ठि पुत्र! आजकल क्या व्यापार करते हो / जवाहरात का व्यापार करते हो [165