________________ आगम निबंधमाला विषय लिया और क्रमशः चोरी पर उपदेश देने लगे। चोर अपनी चतुराई से पर द्रव्य हरण कर आनंद पाते हैं किन्तु जब कभी रंगे हाथ पकड़ा जावे तो फिर उसकी बड़ी दुर्दशा होती है / वह सुख से नींद नहीं ले सकता / लुकना छिपना करता रहता है / अपयश कमाता है, लोगों को दुःख देता है, सब की हाय, दुराशीष लेकर मरता है एवं वैर बंध कर के दुर्गति में नानाविध दुःख पाता है / . यह सुनते सुनते मणिसागर का चेहरा फक सा रह गया / इधर मंत्रीश्वर ने भी ईशारा किया कि गुरूदेव का फरमान स्वीकार कर लेना अब ऐसा अवसर मत चूकना / हाथ जोड़कर चोरी के पच्चक्खाण कर लो / उसने स्पष्ट जबाब दे दिया कि एक बार कहो चाहे लाख बार, मैं इसे नहीं छोड़ सकता / और कहो जो सब कुछ मान सकता, चाहे प्राण भी दे दूँ। मंत्रीश्वर ने उसे वचनबद्ध करके गुरूदेव से झूठ बोलने का त्याग करवा दिया ।मणिसागर ने भी दृढ नियम ले लिया। चोरी का उसका धंधा बराबर चलता रहा। जनता ने देखा मंत्रीश्वर ने सुनकर कुछ भी उपाय नहीं किया है, अब तो शिकायत राजा के पास करनी चाहिए / इक्ट्ठे होकर नगर के प्रमुख जन राजा के पास गये। अपनी व्यथा सुनाई / राजा ने आश्वासन दिया कि समझलो आज से चोर गया / निडर होकर रहो। . रात्रि में राजा वेष परिवर्तन कर पहरेदारी के लिए चला / चोर भी दो नौकर को साथ लेकर आज राजकोश में चोरी करने चला। संयोगवश मार्ग में राजा उन्हें मिल गया। पूछा- इतनी रात में कहाँ जा रहे हो ? कौन हो तुम ? मणिसागर को झूठ बोलना था नहीं, उसने उत्तर दिया कि हम तीनों चोर हैं / आपकों कहना है सो कह दो और करना हो सो करलो / राजा ने फिर पूछ लिया कि कहाँ चोरी करोगे यह भी बता दो / चोर ने निडरता से सत्य कह दिया कि आज राजा के भण्डार में चोरी करेंगे / राजा मन ही मन बोलता है कि वहाँ कोई तुम्हारा नानी का घर है जो शीघ्र घुस जाओगे। राजा ने समझ लिया कोई पागल दिमाग के हैं / उन्हें मजाक से कह दिया- जाओ यह पड़ा खास रस्ता, समय मत गवाँओ, तुम्हें कोई [164]