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________________ आगम निबंधमाला रहने लगा / कुछ समय बाद धनदत्त चल बसा / मणिसागर बड़ा आनंद से रहने लगा। चोरियाँ करने का क्रम उसने जारी रखा / वह चोरी करने में इतना सिद्धहस्त बन गया कि कोई भी उसका पता नही लगा सकता, न उसे पकड़ सकता / प्रतिदिन नगर में चोरिया होने से लोगों ने मिल कर प्रधान के पास निवेदन किया / प्रधान ने चितन किया कि नगर में फिजूल बिना मर्यादा का खर्चा करने वाला कौन है ? सोचते हुए उसे मणिसागर का ध्यान आया कि इसके कमाई कम है और उलजलूल (ऊल-फेल वेसुद्ध) खर्च है / अत: यही चोरों का सरदार है। ___ मंत्रीश्वर ने प्रेम से मणिसागर को अपने पास बिठाकर कहा कि मेरे मन में बड़ा आश्चर्य है कि क्यों तुम लोगों का धन हरण करते हो? क्यों यह अधर्म कार्य करते हो? तुम्हारे पास बहुत दौलत पड़ी है, फिर यह व्यसन क्यों? ... मणिसागर को बड़ा आश्चर्य हुआ दिमाग चक्कर खाने लगा कि मंत्रीश्वर को यह मालुम कैसे पड़ गया? अब क्या करना? झूठ बोलूँ तो भी ये बुद्धि निधान है, अनुभवी है, अतः झूठ चलेगा भी नहीं / यह सोच अपनी चोरी करने की आदत को स्वीकार कर लिया कि आपका कथन सच्चा है परन्तु यह दुर्व्यशनी आपका बच्चा है। मैं चोरी का पूरा आदी हूँ अत: आप मुझे इसके लिए कभी ना कहना। मंत्री हैरान सा हो गया कि यह अपने दुर्गुण पर भी अटल है, किन्तु स्पष्टवादी भी है / अत: मत्री ने उसे कह दिया जाओ। अवसर पाकर तुम्हारा उचित उपाय किया जाएगा / मणिसागर के जाने के बाद मंत्री को खबर मिली कि नगरी में धर्मघोष आचार्य पधारे हैं, मंत्री बहुत ही प्रसन्न हुआ उसने मणिसागर को सूचना करवा दी कि कल सुबह हम साथ में गुरूदर्शन के लिए जाएँगे / उसने बिना किसी आनकानी के मंत्री का कथन स्वीकार किया / प्रात:काल होते ही दोनों गुरू दर्शन कर उनके समीप में यथास्थान बैठ गये / अन्य भी नगर के लोगों से सभास्थल भर गया। . मुनिराज ने जनता की भावना देखकर व्याख्यान प्रारंभ किया। धर्म की दुर्लभता, त्याग व्रत का महत्व बताते हुए पाँच आश्रवों का | 163
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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