________________ आगम निबंधमाला तिर्यंच योनि(पंशु जीवन) के दुःख :(1) पाफे से भारी बने जीव तिर्यंच योनि में भी दु:खों से व्याप्त रहते हैं / प्राणियों में परस्पर जन्मजात वैर भाव होते हैं / कुत्ता, बिल्ली, चूहा, तीतर, बाज, कबूतर आदि जीव, जीव के भक्षक बने रहते हैं। रात दिन एक दूसरे को ताकते रहते हैं। हिंसक मांसाहारी प्राणी तो अन्य जीवों के भक्षण से ही अपना उदर पोषण करते हैं। (2) कई जीव भूख प्यास व्याधि की वेदना का कुछ भी प्रतिकार नहीं कर पाते। (3) कई पशुओं को गर्म शलाकाओं से डांभा जाता है, मारपीट की जाती है, नपुंसक बनाया जाता है, भार वहन कराया जाता है एवं चाबकों से मार मार कर अधमरा कर दिया जाता है / इन सारी यातनाओं को चुपचाप सहन करना पड़ता है / उदंडता करने पर और अधिक आपत्तियों का सामना करना पड़ता है। (4) कई मांसाहारी लोग पशुपक्षियों का अत्यन्त निर्दयता पूर्वक वध करते हैं / बकरे, मुगें, गाय, भेड़ आदि के मांस को बेचने का धंधा करने वाले कसाई भी इनका प्राणांत प्रतिदिन करते रहते हैं / इस प्रकार मूक पशु भयावह यातनाओं को भोगते हैं / पशु जीवन मात्र ही कष्टों से परिपूर्ण है / (5) कई जीव मक्खी , मच्छर, भ्रमर, पतंगा आदि चौरेन्द्रिय योनि में दुःख पाते हैं। कई कीड़ी मकोड़े आदि तेइन्द्रिय जीव बनकर अज्ञानदशा में दुःख पाते ही रहते हैं / इसीतरह लट, गिंडोला, कृमि आदि द्वीन्द्रिय योनि में जीव दुःख पाते हैं / पाँच स्थावर पृथ्वी, पानी, अग्नि, हवा व वनस्पति की विविध योनियों में जीव बेभान अवस्था में दुःख भोगते रहते हैं / (6) पाप कर्म से भारी बने जीव मनुष्य भव को प्राप्त करके भी अंधे, लंगड़े, कुबड़े, गूगे, बहरे व कोढ़ आदि रोगों से व्याप्त हीनांग विकलांग, कुरूप, कमजोर, शक्ति-विकल, मूर्ख, बुद्धि-विहीन, दीन-हीन, गरीब होकर दुःख भोगते हैं / इस प्रकार हिंसक जीव कुगतियों में भ्रमण कर दुःख भोगते रहते हैं। निबंध-४४ . चोरी करने वालों का इस भविक दुःख . (1) चौर्य कर्म करते हुए जब पकड़ लिया जाता है तब बंधनों से 159