SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम निबंधमाला बाँधा जाता है, मारा-पीटा जाता है, अधिकारियों को सौंपा जाता है, कारागार में ढूंस दिया जाता है / वहाँ डांट फटकार, गर्दन पकड़ना, धक्के देना, पटकना, ताड़ना-तर्जना आदि की जाती है / वस्त्र छीन लिए जाते हैं हथकड़ी, बेड़ी, खोड़ा, सांकल से बाँधा जाता है। पीजरों, भोयरों में जकड़ कर डाल दिया जाता है / अंगों में कीले ठोक देना, बैलों की जगह जोतना या गाड़ी के पहियों से बाँध देना, खंभे से चिपकाना, उलटा लटकाना इत्यादि बंधनों आदि से पीड़ित किए जाते हैं। (2) सुईयाँ चुभोई जाती है, वसूले से शरीर को छीला जाता है / क्षार पदार्थ लाल मिर्च आदि छिड़के जाते हैं / लोहे के नोकदार इंड़े उनके छाती, पेट, गुदा और पीठ में भोंक देते हैं / इस तरह चौर्य कर्म करने वालों के अंग-प्रत्यंग चूर-चूर कर दिए जाते हैं / यमदूतों के समान कारागार के कर्मचारी मारपीट करते हैं / इस प्रकार वे मंद पुण्य. अभागे चोर जेल में थप्पड़ों, मुक्कों, चर्म-पट्टों, तीक्ष्ण-शस्त्रों, चाबुकों, लातों, मोटे रस्सों, बेतों के सेकड़ों प्रहारों से पीड़ित होकर मन में उदास, खिन्न हो जाते हैं, मूढ़ बन जाते, उनका टट्टी, पेशाब, बोलना, चलना-फिरना बंद कर दिया जाता है / इस प्रकार की यातनाएँ वे अदत्त चौर्य कर्म करने वाले पापी प्राप्त करते हैं / (3) ये चोर 1. इन्द्रियों का दमन नहीं कर सकने से, इन्द्रियों के दास बनने से 2. धन लोलुप होने से 3. शब्दादि स्त्री विषयों में आशक्त होने से, तृष्णा में व्याकुल होकर धन प्राप्ति में ही आनंद मान कर चौर्य कर्म करते हैं किन्तु जब राजपुरुषों द्वारा पकड़ लिए जाते हैं तब उन्हें प्राण दंड की सजा दी जाती है। नगर में प्रसिद्ध स्थलों व चौराहों पर लाकर मार पीट की जाती है, घसीटा जाता है / (4) फाँसी पर ले जाया जाता है दो काले वस्त्र पहनाए होते हैं, विविध प्रकार से अपमानित किया जाता है / कोयले के चूर्ण से पूरा शरीर पोत दिया जाता है, तिल-तिल जितने खुद के शरीर के टुकड़े काट कर जबरन खिलाए जाते हैं, इस प्रकार नगर में घूमा कर नागरिक जनों को दिखाया जाता है, पत्थर आदि से पीटा जाता है, फिर उन अभागों को सूली में पिरो दिया जाता है जिससे उसका पूरा शरीर चिर जाता है। (5) वध स्थान में कईओं के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाते हैं, वृक्ष की 160
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy