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________________ आगम निबंधमाला दर्शन वंदन के लिये गई। उपदेश सुनकर बहुत खुश हुई। उसे निर्ग्रन्थ प्रवचन पर अत्यन्त श्रद्धा रुचि हुई। माता पिता से आज्ञा लेकर दीक्षा लेने के लिए तत्पर हो गई। माता-पिता ने उसका दीक्षा महोत्सव किया एवं हजार पुरुष उठाने वाली शिविका में बिठाकर भगवान की सेवा में ले गये और भगवान को शिष्यणी रूप भिक्षा स्वीकार करने का निवेदन किया। भगवान ने उसे दीक्षा देकर पुष्पचूला आर्या के सुपुर्द किया। पुष्पचूला आर्या के पास शिक्षा प्राप्त कर वह तप संयम में आत्मा को भावित करने लगी। कालांतर से भूता आर्या शरीर की सेवा सुश्रूषा में लग गई और शुची धर्मी प्रवृत्तियों का आचरण करने लगी अर्थात् वह बारंबार हाथ, पाँव, मुँह, सिर, काखें, स्तन, गुप्तांग को धोती थी और बैठने, सोने, खड़े रहने की जगह को पहले पानी छिड़कती फिर बैठना आदि करती। गुरुणी के द्वारा इन सब प्रवृत्तियों के लिए निषेध करने पर एक दिन वह अलग जाकर किसी स्थान में अकेली रहने लगी और अपनी इच्छानुसार करने लगी। अनेक प्रकार की तपस्याएँ करते हुए आलोचना प्रायश्चित नहीं करने से वह विराधक होकर, पहले देवलोक के श्री अवतंसक विमान में श्री देवी रूप में उत्पन्न हुई। किसी समय भगवान महावीर के समीप में आकर उस. देवी ने अनेक प्रकार की नाट्य विधि के द्वारा अपनी ऋद्धि का प्रदर्शन किया। वहाँ से एक पल्योपम की स्थिति पूर्ण होने पर वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मुक्ति प्राप्त करेगी। ... भूता के समान ही नौ स्त्रियों का वर्णन है, केवल नाम का अन्तर है। सभी शरीर बकुशा होकर प्रथम देवलोक में गई और एक पल्योपम की स्थिति पूर्ण होने पर महाविदेह क्षेत्र में मोक्ष जावेगी। इस वर्ग के वर्णन से यह ज्ञात होता है कि लोक में जो भी लक्ष्मी, सरस्वती आदि देवियों की पूजा प्रतिष्ठा की जाती है वह प्रथम देवलोक की देवियों के प्रति एक प्रकार की भक्ति का प्रदर्शन है। उसके साथ ही उन्हें प्रसन्न कर उनसे कछ पाने की आशा रखी जाती है। तीसरे वर्ग में माणिभद्र, पूर्णभद्र देव का वर्णन है उनकी भी जिन / 155
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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