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________________ आगम निबंधमाला.. प्रत्युत्तर में देव ने कहा कि तुमने पार्श्वनाथ भगवान के समीप श्रावक के बारह व्रत अंगीकार किए थे, उन्हें छोड़ दिया और यह तापसी दीक्षापालन कर रहे हो, यह ठीक नहीं किया है। पुनः सोमिल ने पूछा कि अब मेरा आचरण सुन्दर कैसे हो सकता है ? देव ने पुनः श्रावक के बारह व्रत स्वीकार करने की प्रेरणा की और चला गया। तब सोमिल ब्राह्मण ने स्वयं पुनः बारह व्रत स्वीकार किए एवं उपवास से लेकर मासखमण तक की तपस्याएँ की। अनेक वर्ष श्रावक व्रत का पालन कर पन्द्रह दिन के संथारे से कालं करके शुक्रावतंसक विमान में शुक्र महाग्रह के रूप में देव हुआ। किसी समय यह शुक्र महाग्रह देव भी भगवान महावीर की सेवा में आया। दर्शन वंदन करके अपनी ऋद्धि का प्रदर्शन करके चला गया। व्रत भंग एवं तापसी दीक्षा स्वीकार करने की आलोचना. प्रतिक्रमण न करने से वह विराधक हुआ। देव भव की आयु पूण करके महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर आत्मकल्याण करेगा। निबंध-४२ श्री,ही, लक्ष्मी, बुद्धि आदि दस देवियाँ ___ उपांगसूत्र के चौथे वर्ग में दस स्त्रियों का वर्णन है जिन्होंने पार्श्वनाथ भगवान के शासन में "पुष्प चूला' साध्वी प्रमुखा के पास अध्ययन कर तप संयम का पालन किया, इसलिये इस वर्ग का पुष्प चूला यह नाम रखा गया है। वे दसों स्त्रियाँ संयम पालन कर क्रमशः निम्न देवियाँ बनी (1) श्री देवी (2) ही देवी (3) धृति देवी (4) कीर्ति देवी (5) बुद्धि देवी (6) लक्ष्मी देवी (7) ईला देवी (8) सुरा देवी (9) रस देवी (10) गंध देवी। श्री देवी-राजगृही नगरी में सुदर्शन नामक संपन्न सद्गृहस्थ रहता था। उसके "प्रिया" नाम की भार्या थी एवं भूता नाम की एक लड़की थी। जो वृद्ध एवं जीर्ण शरीर वाली दिखती थी। उसके सभी अंगोपांग शिथिल थे। अतः उसको कोई भी वर नहीं मिला। एक बार पार्श्वनाथ भगवान उस नगरी में पधारे / माता-पिता की आज्ञा लेकर वह भूता लड़की भी अपने धार्मिक रथ में बैठकर [154
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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