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________________ आगम निबंधमाला एक बार उस नगरी में पार्श्वनाथ भगवान का पधारना हुआ। सोमिल ब्राह्मण को ज्ञात होने पर वह अनेक प्रश्नों को लेकर भगवान की सेवा में पहुँचा। प्रश्नों का समाधान पाकर संतुष्ट हुआ एवं श्रावक धर्म स्वीकार किया। साधुओं की संगति की कमी के कारण किसी समय वह सौमिल धर्म भावना में शिथिल हो गया एवं उसे अनेक प्रकार के बगीचे लगाने की भावना हुई। उसने अनेक आम्र आदि फलों एवं विविध फूलों के बगीचे लगाए। कालांतर में उसने दिशा प्रोक्षिक तापस की प्रव्रज्या अंगीकार की। उसमें वह बेले-बेले पारणा करता था और पारणे में स्नान, हवन आदि क्रियाएँ करके फिर आहार करता था। प्रथम पारणे में वह पूर्व दिशा में जाता है और उस दिशा के स्वामी देव की पूजा करके आज्ञा लेकर कंदादि ग्रहण करता है। दूसरे पारणे में दक्षिण दिशा में, तीसरे पारणे में पश्चिम और चौथे पारणे में उत्तर दिशा में जाता है / इस प्रकार तापस दीक्षा का और तपस्या का आचरण करता है। तापसी दीक्षा का पालन करते हुए उसे संलेखना करने का संकल्प हुआ। उसने प्रतिज्ञा करी.कि मैं उत्तर दिशा में चलते-चलते जहाँ भी गिर जाऊँगा वहाँ से नहीं उलूंगा। पहले दिन उत्तर दिशा में चलता है एवं शाम को किसी भी योग्य स्थान में अपने विधि विधान करके काष्ट मुद्रा से मुख बाँधकर मौन धारण कर ध्यान में बैठ जाता है / रात्रि में एक देव वहाँ प्रगट होता है और कहता है- हे सोमिल! यह तेरी प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है अर्थात् यह तेरा आचरण सही नहीं है खोटा है। सोमिल ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। देव चला गया। दूसरे दिन फिर वह काष्टमद्राबाँधकर उत्तर दिशा मेंचला। शाम को योग्य स्थान में ठहरा ।रात्रि में फिर देव आया, उसी प्रकार बोला। सोमिल के कुछ भी ध्यान न देने पर देव चला गया / - तीसरे दिन अपने भंडोपकरण लेकर काष्ट मुद्रा से मुंह बाँधकर फिर उत्तर दिशा में चला, योग्य स्थान में ठहरा, रात्रि में देव आया, बोला एवं सोमिल के उपेक्षा करने पर चला गया। इसी प्रकार चौथा दिन भी बीत गया। पाँचवें दिन देव के पुनः आने एवं बार-बार कहने पर सोमिल ने पूछ लिया कि हे देवानुप्रिय! मेरी दीक्षा खोटी क्यों है ? [153
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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