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________________ आगम निबंधमाला ___आज के वैज्ञानिक इस चन्द्र विमान में नहीं पहुँच कर अपनी कल्पना अनुसार अन्यान्य पर्वतीय स्थानों में ही भ्रमण कर रहे हैं। क्यों कि ज्योतिष-राज चन्द्र का विमान रत्नों से निर्मित एवं अनेक देवों से सुरक्षित है। जब कि वैज्ञानिकों को अपने कल्पित स्थान में मिट्टी पत्थर के सिवाय कुछ भी नहीं मिलता है। अंगजीत मुनि ने संयम जीवन में क्या विराधना की, इसका स्पष्ट उल्लेख सूत्र में नहीं है किंतु विराधना करने का संकेत मात्र है। (पुष्पिका सूत्र के नाम से प्रचलित एवं वास्तव में उपांगसूत्र के तीसरे वर्ग में यह वर्णन है।) सूर्यविमान वासी सूर्य देव :- श्रावस्ति नगरी के अंदर सुप्रतिष्ठित नामक वणिक रहता था इसका पूरा वर्णन अंगजीत के समान है अर्थात् सांसारिक ऋद्धि, संयम ग्रहण, ज्ञान, तप, संलेखना, संयम की विराधना आदि प्रथम अध्ययन के समान ही है। पार्श्वनाथ भगवान के पास दीक्षा अंगीकार की और ज्योतिषेन्द्र सूर्य देव हुआ। चन्द्र के समान यह देव भी एक बार भगवान महावीर स्वामी की सेवा में उपस्थित हुआ एवं अपनी ऋद्धि और नाट्य विधि का प्रदर्शन किया। ये चन्द्र और सूर्य दोनों ही ज्योतिषेन्द्र महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे और वहाँ यथासमय तप संयम का पालन कर संपूर्ण कर्म क्षय करके शिव गति को प्राप्त करेंगे। वैज्ञानिक सूर्य के रत्नों के विमान को आग का गोला समझते हैं यह मात्र उनकी कल्पना का भ्रम है। जैन सिद्धांत में इसे रत्नों का विमान बताया है जो कि ज्योतिषेन्द्र सूर्य देव के संपूर्ण परिवार का निवास स्थान एवं जन्म स्थान है। इसमें हजारों देव देवियाँ उत्पन्न होते हैं, निवास करते हैं / यह जम्बूद्वीप में भ्रमण करने वाला सूर्य विमान है। ऐसे दो विमान सूर्य के और दो चन्द्र के जम्बूद्वीप में भ्रमण करते हैं। पूरे मनुष्य क्षेत्र में 132 चन्द्रविमान और 132 सूर्यविमान भ्रमण करते हैं। मनुष्य क्षेत्र के बाहर असंख्य चन्द्र और असंख्य सूर्य विमान अपने स्थान पर स्थिर रहते हैं। शुक्र महाग्रह :- वाराणसी नाम की प्रसिद्ध नगरी में सोमिल नाम का ब्राह्मण रहता था। वह चारों वेदों का तथा अनेक शास्त्रों का ज्ञाता था एवं उसमें पूर्ण निष्णात था। / 152
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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