________________ आगम निबंधमाला प्रेरक या अनुमोदन भी नहीं बनना चाहिए। किन्तु शालीनता एवं शिष्टता के व्यवहारों तक ही सीमित रहना चाहिए। क्योंकि धर्म आत्म परिणामों की प्रमुखता पर निर्भर रहता है, दूसरों पर बलात्कार करके स्वयं का धर्मी धर्माचारी कहलाना योग्य नहीं होता है। उपसंहार :- इस प्रकार अनेक शिक्षाओ, प्रेरणाओं से एवं ज्ञातव्य तत्त्वों से परिपूर्ण यह सूत्र, साधको के अनुभव ज्ञान एवं श्रद्धान को पुष्ट करने वाला है। अतः इसके अध्ययन मनन से यथोचित आत्म विकास को प्राप्त करना चाहिये / निबंध-४१ ___ ज्योतिषी देवेन्द्रों का पूर्व भव चंद्र विमानवासी चंद्र देव :-श्रावस्ति नाम की नगरी में अंगजीत नामक संपन्न वणिक रहता था / अनेक लोगों का वह आलंबनभूत, आधारभूत और चक्षुभूत था अर्थात् अनेक लोगों का वह मार्गदर्शक अग्रसर था। एक बार वहाँ पार्श्वनाथ भगवान विचरण करते हुए पधारे। अंगजीत सेठ दर्शन करने गया। भगवान की देशना सुनी। संसार से विरक्त हुआ। पुत्र को कुटुम्ब का भार संभला कर स्वयं भगवान के पास दीक्षित हो गया। उसने ग्यारह अंगों का कंठस्थ ज्ञान किया। अनेक प्रकार की तपस्याएँ की। 15 दिन के संथारे में काल करके चंद्र विमान में इंद्र रूप में उत्पन्न हुआ। संयम की आराधना में कुछ कमी होने से वह संयम का विराधक हुआ। . चंद्र देव ने दैविक सुख भोगते हुए कभी अवधिज्ञान के उपयोग से जम्बूद्वीप के इस भरत क्षेत्र में विचरण करते हुए भगवान महावीर स्वामी को देखा। फिर सपरिवार भगवान के दर्शन वंदन करने के लिये आया एवं जाते समय 32 प्रकार की नाट्यविधि का एवं अपनी ऋद्धि का प्रदर्शन किया। उसके जाने के बाद गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान ने उसके पूर्व भव का कथन किया। वर्तमान में जो चंद्र विमान हमें दिखता है उसमें यह अंगजीत का जीव इन्द्र रूप में देव है। वहाँ उसके चार अग्रमहिषी देवी है। सोलह हजार आत्मरक्षक देव आदि विशाल परिवार है। | 151