________________ आगम निबंधमाला श्रमणों के लिये जो णमोत्थणं का पाठ उच्चारण किया जाता है उसमें तीर्थंकरों के संपूर्ण गुणों का उच्चारण न करते हुए संक्षिप्त में बोला जाता है, यथा- णमोत्थुणं केसिस्स कुमारसमणस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स एवं विशिष्ट ज्ञानी गुरु हो तो वंदामि णं भंते तत्थगए इहगयं, पासउ मे भगवं तत्थगए इहगयं त्ति कट्ट वंदइ णमंसइ इतना और अधिक बोला जाता है। उपकारी श्रमणोपासक को भी परोक्ष में णमोत्थुण से वंदन किया जा सकता है, यथा औपपातिक सूत्र में- णमोत्थुणं अंबड़स्स परिव्वायगस्स (समणोवासगस्स)अम्हं धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स। . औपपातिक सूत्र में तीन बार णमोत्थुणं देने के प्रसंग का कथन है। राजप्रश्नीय सत्र में एवं ज्ञाता सूत्र में दो बार णमोत्थुणं देने के प्रसंगो का कथन है। दो बारं देने वाले सूर्याभ ने सिद्ध और अरिहंत भगवान महावीर स्वामी को, चित्त एवं प्रदेशी तथा धर्मरूचि अणगार ने सिद्ध ए वं गुरु को णमोत्थुणं से परोक्ष वंदन किया / तीन बार देने वाले अंबड़ के शिष्यों ने सिद्धों को, भगवान महावीर को एवं गुरु अंबड़ को णमोत्थुणं से परोक्ष वंदन किया / तात्पर्य यह है कि शासनपति तीर्थंकर मौजूद हो तो गुरु को परोक्ष वंदम में णमोत्थुणं से तीन बार वंदन होता है। शासनपति तीर्थंकर निर्वाण प्राप्त हो गये हों तो सिद्ध और गुरु को यों दो बार णमोत्थुणं दिया जाता है। उस समय अरिहंतो को या महाविदेहस्थ विहरमानों को णमोत्थुणं नहीं दिया जाता है। जब किसी उपकारी गुरु को णमोत्थुणं नहीं देना हो तो सिद्ध एवं शासनपति तीर्थंकर दो को णमोत्थुणं दिया जाता है और जब गुरु को णमोत्थुणं नहीं देना हो और शासनपति तीर्थंकर निर्वाण प्राप्त हो चुके हों तो केवल एक सिद्धों को णमोत्थुणं दिया जाता है अर्थात् जब उपकारी गुरु समक्ष है और शासन पति तीर्थंकर मोक्षप्राप्त हो चुके हैं तो सिद्ध भगवान को केवल एक णमोत्थुणं दिया जाता है। तदनुसार वर्तमान में कई समुदाय वाले एक णमोत्थुणं भी देते है जो आगमोचित ही प्रतीत होता है / (15) कथा रूप अध्ययनों का स्वाध्याय करने में यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि उनमें ग्रहण करने योग्य, छोड़ने योग्य, जानने योग्य और समभाव, मध्यस्थभाव रखने योग्य, यो कई तरह के विषय होते है। [147