________________ आगम निबंधमाला विशेष- नवकारसी में सर्व समाधि प्रत्ययिक आगार नहीं होता है, . शेष सभी में होता है। परिठावणियागार पाँच में होता है, पाँच में नहीं होता है। 1. एकासना 2. एकलठाणा 3. निवी 4. आयंबिल 5. उपवास में होता है / महत्तरागार दो में नहीं होता है, नवकारसी और पोरिसी। शेष आठ में होता है। प्रतीत्यम्रक्षित आगार केवल निवी में होता है। लेपालेप, उत्क्षिप्तविवेक, गृहस्थ-संसृष्ट ये तीन आगार आयंबिल, निवी इन दो प्रत्याख्यानों में ही होते हैं। अनाभोग और सहसागार ये दो आगार सभी में होते हैं / प्रछन्न काल, दिशा मोह, साधु वचन ये तीन आगार,पोरसी एवं दो पोरसी, दो पच्चक्खाण में ही होते हैं ।आकुंचन प्रसारण आगार एकासन में ही होता है। निबंध-२ समभाव-क्षमाभाव चिंतन : 15 दोहे खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे / मित्ती मे सव्वभूएसु, वेर मज्झं न केणई ॥आव.४॥ चौथा आवश्यक का यह अंतिम पाठ है / पाँचवें आवश्यक के कायोत्सर्ग में इसका चिंतन करना चाहिये / ' व्रत शुद्धि रूप प्रतिक्रमण के साथ-साथ हृदय की पवित्रता, विशालता एवं समभावों की वृद्धि हेतु क्षमापना भाव की भी आत्म उन्नति में परम आवश्यकता है। अतः प्रतिक्रमण अध्याय क समस्त सूत्रों के बाद यह क्षमापना सूत्र दिया गया है। इस सूत्र का कायोत्सर्ग मुद्रा में चिंतन मनन करके आत्मा को विशेष विशुद्ध-कषाय मुक्त बनाया जा सकता है। आत्मा को विशुद्ध बनाने के लिये पूर्ण सरलता और शांति के साथ, समस्त प्राणियों के अपराधों को उदार चिंतन के साथ, क्षमा करके अपने मस्तिक को उनके प्रति परम शांत और पवित्र बना लेना चाहिये। अहंभाव, घमंड को मन से दूर हटा कर, अपनी यत्किंचित् | 14