________________ आगम निबंधमाला भूलों का स्मरण कर, स्वीकार कर, उससे संबंधित आत्मा के साथ लघुता पूर्वक क्षमा याचना कर, उसके हृदय को शांत करने का अपना उपक्रम-प्रयत्न कर लेना चाहिये / अपनी मनोदशा ऐसी बन जानी चाहिये कि जगत के समस्त प्राणियों के साथ मेरी मैत्री ही है, किसी के भी साथ अमैत्री या वैर विरोध भाव नहीं है। जो भी कोई वैर भाव क्षणिक बन गया हो तो उसे हटा कर भला देना चाहिये एवं समभाव द्वारा मैत्री भाव, तटस्थ भाव मानस में स्थापित कर देना चाहिये। किसी के प्रति किसी भी प्रकार का नाराजी का भाव नहीं रखना चाहिये / अभीचिकुमार के जीवन वर्णन से योग्य शिक्षा ग्रहण कर अपने को सभी के प्रति पूर्ण समाधानमय मानस बना लेना चाहिये / [भगवतीसूत्र शतक-१३ अनुसार भगवान महावीर का श्रावक अभीचिकुमार ने श्रावक व्रतो की पूर्ण आराधना और 15 दिन का संथारा किया था किंतु भगवान के पास दीक्षा लेकर मोक्ष गये अपने पिता के प्रति नाराजी भावों का समाधान नहीं किया था, जिससे वह संथारे में काल करके भी आतापा नामक असुरकुमार में उत्पन्न हुआ अर्थात् मिथ्यात्व में आयुष्य बांधा और विराधक गति को प्राप्त हुआ। इस दृष्टांत के मर्म को समझ कर पूर्ण लक्ष्य के साथ आत्म शुद्धि कर लेनी चाहयि] समभाव क्षमाभाव चिंतन के कुछ दोहे :-. खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे / मित्ती मे सव्व भूएसु, वेर मज्झं न केणई // 1 // क्षमा बडन को चाहिए, छोटन को उत्पात / कहा कृष्ण को थई गयो, भृगु जी मारी लात // 2 // जैसी जापे वस्तु है, वैसी दे दिखलाय / वांका बुरा न मानिए, वो लेन कहाँ पर जाय // 3 // बांध्या बिन भुगते नहीं, बिन भुगत्या न छुडाय / आप ही करता भोगता, आप ही दूर कराय // 4 // बांध्या सो ही भोगवे, कर्म शुभाशुभ भाव / फल निर्जरा होत है, यह समाधि चित चाव // 5 //