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________________ आगम निबंधमाला कछ दिन बाद देखा तो उसमें हजारो जीव(कीडे) पैदा हो गये। एक बंद कुंभी में उन जीवों ने प्रवेश कहां से किया? अंदर तो कोई भी जीव था ही नहीं। केशी- राजन् ! कोई सघन लोहे का गोला है। उसे अग्नि में रख दिया जाय तो थोड़ी देर बाद वह पूर्ण तपकर लाल हो जाय तो यह समझना कि उसमें अग्नि ने प्रवेश किया। फिर उस लोहे को देखा जाय तो उसमें कोई भी छिद्र नहीं दिखेगा तो भी अग्नि ने उसमें प्रवेश किया ही है। उसी प्रकार जीव भी बंद कुंभी में प्रवेश कर सकते हैं / उनका अस्तित्व स्वरूप अग्नि से भी अत्यंत सूक्ष्म है। उसके लिए लोहे आदि से बाहर निकलने या भीतर प्रवेश करने में किसी प्रकार की बाधा नहीं आती है / अतः हे राजन् ! तुम श्रद्धा करो कि शरीर से भिन्न आत्म तत्त्व है, अतः जन्म-मरण और परलोक भी है। राजा- एक सशक्त व्यक्ति पाँच मण वजन उठाकर रख सकता है और दूसरा अशक्त व्यक्ति उस वजन को नहीं उठा सकता, इसलिए मैं यह मानता हूँ कि शरीर है वहीं आत्मा है यदि आत्मा अलग होता तो एक आत्मा वह वजन उठा सकता है तो दूसरा भी उठा लेता। क्यों कि शरीर से अशक्त सशक्त कैसा भी हो आत्मा तो सब का एक सरीखा और अलग-अलग है। किन्तु सभी आत्मा सरीखी होते हुए भी एक सरीखा वजन नहीं उठा सकते / अतः मेरा मानना सही है कि शरीर है वही आत्मा है जैसा शरीर है वैसा ही कार्य होता है / अतः अलग से आत्मा को मानने की कोई आवश्यकता नहीं है / केशी- समान शक्ति वाले पुरुषों के भी साधन के अंतर के कारण कार्य में अंतर होना स्वाभाविक है। यथा- एक सरीखी शक्ति वाले दो पुरुषों को लकड़ी काटने का कार्य दिया गया किन्तु एक को तीक्ष्ण धार वाला कुल्हाड़ा दिया गया, दूसरे को खराब हुई धार वाला कुल्हाड़ा दिया गया। अच्छे कुल्हाड़े वाला व्यक्ति लकड़ियों को शीघ्र काटकर रख देगा और खराब कुल्हाड़े वाला नहीं काट सकेगा। इसका यह अर्थ तो नहीं होगा कि जैसा शस्त्र है वैसा कार्य होता है तो व्यक्ति कुछ भी है ही नहीं। किन्तु व्यक्ति का अस्तित्व होते हुए भी जिस प्रकार साधन के कारण कार्य में अंतर होता है। उसी प्रकार आत्मतत्त्व / 134
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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