________________ आगम निबंधमाला सारथी एवं अनेक नागरिकों ने दर्शन प्रवचन आदि का लाभ लिया। चित्त ने राजा को प्रतिबोधित करने का भी निवेदन किया। मुनि ने बताया कि जो सत्संग में आवे ही नहीं, दूर-दूर रहे, उसे प्रतिबोध कैसे दिया जा सकता? तब चित्त ने राजा को सत्संग में उपायपूर्वक लाने का निर्णय किया। कंबोज देश के घोड़े आये हुए थे एवं शिक्षित किये गये थे। राजा को उनके परीक्षण के लिये निवेदन किया। रथ में चारों घोड़े जोत कर राजा और प्रधान घूमने निकले / शीघ्रगति वाले घोड़े अल्प समय में ही अति दूर निकल गये / राजा गर्मी और प्यास से घबराने लगा। सारथी को निवेदन किया। उसने अवसर देखकर रथ घुमाया और शीघ्रगति से उद्यान में जहा केशीश्रमण का प्रवचन चल रहा था। उसी के निकट वृक्ष की छाया में रथ रोका और राजा के विश्राम की एवं जलपान वगैरह की सारी व्यवस्था कर दी। राजा सुख पूर्वक विश्राम ले रहा था कि केशीश्रमण के प्रवचन की आवाज सुनाई देने लगी और ध्यान देने पर विशाल परिषद भी राजा को नजर आई। धर्मद्वेषी राजा की विश्रांति भंग हुई। उसे विचार हुआ कि अपने ही बगीचे में मैं शांति पूर्वक विश्राम नहीं कर पा रहा हूँ / यहाँ पर जड़ मुंड़ एवं मूर्ख लोग ही इकट्ठे होकर जड़मुड़ और मूर्ख की उपासना कर रहे हैं और वह इतना जोर जोर से बोल रहा है। राजा ने अपने मनोभाव चित्तसारथी के सामने प्रकट किये। चित्त तो राजा का ध्यान उधर खींचना ही चाहता था। चित्त ने धीरे से कहा कि ये 4 ज्ञान के धारी पार्श्वनाथ भगवान के शासन के श्रमण हैं। उन्हें आधोवधि ज्ञान है एवं मनःपर्यवज्ञान है, ये आप की हमारी मन की बात भी जानने वाले महान् संत है / राजा प्रभावित हुआ। चित्त का दाव चल गया। राजा ने मुनि के पास चलने का प्रस्ताव रख दिया। इस प्रकार दोनों धर्मसभा में मुनि के नजदीक पहुँच गये। चित्त सारथी ने अपनी सूझबूझ के साथ राजा को केशीश्रमण के पास पहुँचा दिया। इसी कारण से चित्तसारथी को अधर्मी राजा के धर्मिष्ठ बनने का पूरा श्रेय जाता है। मुनि की सेवा में पहुँचने से ही राजा का जीवन अमावस से पूर्णिमा जैसा बन गया और अल्प समय में ही आत्म कल्याण साध लिया / / 129/