________________ आगम निबंधमाला बार भूमि पर लगाया फिर जोड़े हुए दोनों हाथ मस्तक के पास रखते हुए प्रथम णमोत्थुणं के पाठ से सिद्ध भगवंतो को एवं दूसरे णमोत्थुणं के पाठ से श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वंदन किया एवं गुणकीर्तन किया। फिर सिंहासन पर आसीन हो गया। उसे मनुष्य लोक में आकर भगवान के दर्शन सेवा का लाभ लेने की भावना उत्पन्न हुई। अपने आधीनस्थ आभियोगिक देवों को समवसरण के आसपास के एक योजन प्रमाण क्षेत्र की शुद्धि करने का आदेश दिया / आभियोगिक देवों का आचार :- आज्ञानुसार आभियोगिक देवों ने आमलकप्पा नगरी में आकर प्रथम श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वंदन नमस्कार किया, अपना नाम गौत्र आदि बताकर परिचय दिया / भगवान ने समुचित शब्दों के उच्चारण के साथ उनका वंदन स्वीकार किया एवं कहा हे देवानुप्रियो ! यह आप लोगों का जीताचार-आचार परंपरा है कि चारों जाति के देव प्रसंग प्रसंग पर अधिपति देवों की आज्ञा से आकर अरिहंत भगवंतों को वंदन नमस्कार कर अपना नाम गौत्र बतात हुए परिचय देते हैं। वे आभियोगिक देव इस प्रकार भगवान के वचनामृत सुनकर पुनः हाथ जोड़ कर मस्तक झुकाकर वहाँ से निकल कर बाहर आये और भगवान के चारों तरफ एक एक योजन जितने क्षेत्र की संवर्तक वायु से सफाई की, जल से छिड़काव किया एवं सुगंधित द्रव्यों से उस क्षेत्र को सुवासित कर दिया। फिर वे पुनः भगवान को वंदन कर देवलोक में चले गये। सूर्याभदेव को निवेदन कर दिया कि आपकी आज्ञानुसार कार्य संपन्न कर दिया है / सूर्याभदेव का आगमन :- सूर्याभदेव की आज्ञा से सेनापति देव ने सुस्वरा नामक घंटा को तीन बार बजा कर सभी देवों को सावधान किया। फिर सभी को संदेश सुनाया कि सूर्याभदेव भगवान महावीर स्वामी के दर्शन करने जा रहा है, आप लोग भी अपने अपने विमानों से शीघ्र यहाँ पहुच जावें। घोषणा सुनकर देव सुसज्जित होकर यथासमय वहाँ सुधर्मा सभा में पहुँच गये। सूर्याभदेव की आज्ञा से एक लाख योजन का लंबा चौड़ा गोलाकार यान विमान विकुर्वित किया गया। जिसके मध्य में सिंहासन पर सूर्याभ देव आसीन हुआ। फिर यथाक्रम से सभी देव चढ़कर अपने अपने भद्रासनों पर बैठ गये। शीघ्र गति से विमान पहले | 123]