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________________ आगम निबंधमाला भक्त, ग्लानभक्त, बादलिक भक्त, पाहुणकभक्त आदि दोष वाला आहार पाणी ग्रहण नहीं करता था। कंद, मूल, पत्र, पुष्प, फल, बीज भी ग्रहण नहीं करता था। उसने चार प्रकार के अनर्थदंड़ का जीवन पर्यंत त्याग कर दिया था / पीने के लिये एवं हाथ पैर पात्रादि धोने के लिये चार सेर (आधा आढ़क)पानी ग्रहण करता था तथा स्नान के लिये वह 8 सेर(१ आढक) से अधिक पानी ग्रहण नहीं करता था। पानी ग्रहण के संपूर्ण नियमों का भी वह पालन करता था। अंबड़ संन्यासी अरिहंत एवं अरिहंत भगवान के श्रमणों के अतिरिक्त किसी को भी वंदन नमस्कार(सविधि गुरुवंदन) नहीं करता था। इस प्रकार अंबड़ परिव्राजक अपने पूर्व वेश एवं चर्या के साथ श्रावक व्रतों की आराधना कर मृत्यु के समय एक महिने के संथारे से आयु पूर्ण करके पाँचवे देवलोक में उत्पन्न हुआ। वहाँ उसकी उम्र दस सागरोपम की है। वह भी धर्म का आराधक हुआ / देव भव पूर्ण होने पर अंबड़ का जीव महाविदेह क्षेत्र में उत्तम कुल में जन्म लेगा। दृढ़प्रतिज्ञ नाम रखा जायेगा। 72 कला में पारंगत होगा। यौवन वय प्राप्त होने पर माता पिता उसे भोगों का निमंत्रण करेंगे किंतु वह उन्हें स्वीकार नहीं करेगा। श्रमण निग्रंथों के पास दीक्षा अंगीकार करेगा। अनेक वर्ष संयम पर्याय का शुद्ध आराधन करेगा। जिससे उसे केवल ज्ञान केवलदर्शन की प्राप्ति होगी। फिर अनेक वर्ष केवली पर्याय में विचरण कर, सम्पूर्ण कर्म क्षय कर सिद्ध बुद्ध मुक्त होगा। सिद्ध बुद्ध मुक्त होने के लिये ही श्रमण संयम साधना के इन निम्न कठोरतम नियमों का पालन करता हैं, यथा ... (1) नग्नभाव-शरीर संस्कार त्याग (2) मुंड़भाव-गृह एवं ममत्व परिग्रह त्याग (3) स्नान नहीं करना (4) दांतौन आदि नहीं करना (5) केश लुंचन-मस्तक दाढ़ी मूंछ के समस्त बाल हाथ से खींच कर उखाड़ना (6) अखंड़ ब्रह्मचर्य पालन (7) छत्र त्याग (8) जूते आदि त्याग (9) भूमि पर सोना अथवा पाट या काष्ट खंड़ पर सोना (10) घर घर से भिक्षा लाना (11) लाभालाभ में संतुष्ट रहना (12) दूसरों के द्वारा की गई हीलना, निंदा, खिंसना, गर्हा, ताड़न, तर्जन, पराभव, तिरस्कार, व्यथा, परिताप इन सब स्थितियों में समभाव एवं प्रसन्नता में स्थिर रहते [12]
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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