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________________ आगम निबंधमाला का एवं जिनमत के श्रावक व्रतों का स्वीकार, पालन एवं आराधन अपने सातसो शिष्यों सहित किया था। वे गुरु शिष्य सभी परलोक के आराधक बने थे। ऐसी मिश्र आचार प्रवृत्ति में उन्होंने भगवान का शिष्यत्व स्वीकार किया था एवं भगवान ने भी उनके इस प्रकार के व्यवहार एवं द्विविध आचार का विरोध नहीं किया था। यह अनेकांतिक सिद्धांत में उभय पक्ष की अर्थात् भगवान एवं अंबड़ दोनों की उदार एवं सुमेलभरी दृष्टि एवं विचारणा रही थी। अंबड़ परिवार के शिष्य :- उववाई सूत्र में कहे गये परिव्राजकों में ब्राह्मण परिव्राजक में अंबड़ का कथन है उस अंबड़ परिव्राजक का जीवन वृत्तांत अंश इस प्रकार है- अंबड़ परिव्राजक के सात सौ शिष्य थे। विचरण करते हुए एक बार शिष्यों के परिवार सहित अंबड को श्रमण भगवान महावीर स्वामी की सेवा का अवसर प्राप्त हो गया। निग्रंथ प्रवचन श्रवण कर उसे श्रावक के 12 व्रत धारण करने की रुचि हुई। भगवान ने उसे श्रावक व्रत धारण करवाये। इस प्रकार अंबड़ परिव्राजक निग्रंथ प्रवचन स्वीकार कर श्रावक धर्म का पालन करते हुए परिव्राजक पर्याय में विचरण करने लगा। उसने यथासमय अपने शिष्यो को भी प्रतिबोध देकर बारह व्रतधारी श्रावक बना दिया। गृहस्थ जीवन स्वीकार न करते हुए वे परिव्राजक चर्या से विचरण करते रहे। ऐसा करने में उनके श्रावक व्रतों की आराधना में भी रुकावट नहीं आई थी / अंबड़ परिव्राजक स्वयं कई बार अकेले ही विचरण करते रहते थे / एक बार अंबड़ के सात सौ शिष्यों ने कंपिलपुर से पुरिमताल नगर के लिये प्रस्थान किया। मार्ग में पीने के लिये लिया हुआ जल समाप्त हो गया। जेठ महिने की भीषण गर्मी थी, सभी प्यास से संतप्त हो गये। खोज करने पर भी संयोगवश वहाँ पानी देने वाला नहीं मिल सका। सभी का निर्णय एक ही था कि आपत्तिकाल में भी अदत्त जल ग्रहण नहीं करगे। गंगा नदी के पास में भी पहुँच गये किंतु वहाँ मनुष्य का आवागमन गर्मी के कारण बंद हो चुका था। अंत में सभी ने नदी की बालू रेत में पादपोपगमन संथारा ग्रहण करने का निर्णय कर लिया। ... अपने सभी प्रकार के विविध भंडोपकरण, वस्त्र-पात्र आदि 14 उपकरणों का त्याग किया, फिर बालरेत पर ही पल्यंकासन से / 119
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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