SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम निबंधमाला भी ग्रहण किया / 3. भुक्तभोगी जीवन के अनंतर दीक्षा लेने वाले उक्त सभी राजकुमार संयमग्रहण करने के बाद 11 अंगो के अध्येताकंठस्थ धारण करने वाले बने थे। आज भी श्रमणों को ऐसे आदर्शों को सम्मुख रख कर, आगम अध्ययन अध्यापन का प्रमुख लक्ष्य रखना चाहिए एवं गच्छ के अधिकारी श्रमणो को आगम निर्देशानुसार अपने-अपने संघ में अध्ययन की सुव्यवस्था करनी चाहिए / 4. पौषध में श्रावक को आत्मगुण विकास की धर्म जागरणा करनी चाहिए / 5. पाँच वर्ण के पुष्पों की वृष्टि में देवकृत अचित्त पुष्प समझना चाहिए। 6. श्रावक स्वयं तो गृहस्थ जीवन में रहता है फिर भी मुनि बनने का सदा अनुमोदन करता है, उन्हें धन्य-धन्य समझता है / श्रावक के दूसरे मनोरथ के रूप में वह संयम प्राप्ति के अवसर की चाहना एवं प्रतीक्षा करता है। (7) दस अध्ययनों में वर्णित मासखमण के तपस्वी मुनि पारणा लेने गुरु आज्ञा लेकर स्वयं ही गये, यह एक आगमिक श्रेष्ठ पद्धति रही है जिसका दिग्दर्शन अनेक आगमों में मिलता है / आज इसे ही अवगुण रूप समझा जाता है अर्थात् स्वतंत्र गोचरी करना साधु का आदर्श गुण न माना जाकर अवगुण और हेय माना जाता है / जिससे अनेक उत्तमोत्तम साधनाओं का, अभिग्रहों का स्वतः विच्छेद हो रहा है / अतः इन आगम वर्णनों का सम्यक् अनुचिंतन कर गुण रूप में इन परंपराओं का सम्यक्तया पुनरुत्थान करना चाहिये / विशेष जानकारी के लिए सूयगडांग सूत्र के सारांश में एक चर्या परिशिष्ट का अवलोकन कीजिए। निबंध-३४ अंबड सन्यासी तथा उसके 700 शिष्य अन्यमत के कितने ही संन्यासियों का वर्णन आगमों में आता है, वे प्रायः भगवान से प्रतिबुद्ध होकर अन्यमत की प्रव्रज्या का त्याग कर जिनमत की प्रव्रज्या का अंगीकार कर मोक्ष साधना करते हैं, जिसमें स्कंधक संन्यासी आदि है। किंतु अंबड़ संन्यासी एक ऐसे साधक हुए है कि जिन्होंने अपनी संन्यास अवस्था का त्याग किये बिना जिनमत 118
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy