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________________ आगम निबंधमाला एवं शंकाएँ उद्भूत हो सकती है, जिनका कोई समाधान नहीं होगा। अतः उक्त दृष्टिकोण रखना ही श्रेयस्कर है। सार- सुपात्र दान आदि के समय समकित की प्राप्ति होती है और अन्य क्षणों में पहले या पीछे सम्यकत्व के अभाव में मनुष्यायु का बंध होता है। (2) सुपात्र दान देने में त्रैकालिक हर्ष होना चाहिये- (1) दान देने का अवसर सुसंयोग प्राप्त होने पर (2) दान देते वक्त (3) एवं दान देकर निवृत हो जाने पर / सुपात्र दान की तीन शुद्धि- (1) दाता के भाव शुद्ध हो विवेकवान हो एवं वह मुनि के नियमों के अनुसार शुद्ध अवस्था में भी हो (2) लेने वाले मुनिराज सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन एवं सम्यक्चारित्र के पालन करने वाले आत्मार्थी सुश्रमण हो (3) देय वस्तु अचित्त एवं कल्पनीय हो, उद्गम एवं एषणा दोषों से रहित हो। उक्त तीन शुद्धि एवं तीन हर्ष हो और दीर्घ तपस्या का पारणा हो तो वहाँ देवता प्रसन्न होकर पाँच दिव्य प्रकट करते हैं / (3) घर में मुनिराज के गोचरी पधारने पर किस शालीनता से विधिपूर्वक व्यवहार करना चाहिये, यह इन अध्ययनों में वर्णित सुदत्त सेठ आदि से सीखना चाहिए / आजकल मुनिराज के घर में पधारने पर जो अतिभक्ति या अभक्ति, अविवेक एवं दोषयुक्त व्यवहार किया जाता है, उसमें संशोधन करना चाहिए / जिससे श्रावक श्राविकाएँ भी दोष मुक्त व्रत आराधक हो सके अर्थात् मुनिराज को बुलाकर लाना नहीं, स्वतः ही आने की आशा या अपेक्षा रखनी चाहिए / घर के निकट आने पर घर में आवाज देना, सचित्त पदार्थों को इधर-उधर करना, देय पदार्थों में कुछ की कुछ प्रवृति करना, अकल्पनीय पदार्थ को कल्पनीय करना; इत्यादि प्रवृतिएँ नहीं करनी चाहिए / जो चीज जिस अवस्था में है एवं देयपदार्थ भी जो जिस अवस्था में है उसमें उतावल या अतिभक्ति से कुछ भी परिवर्तित न करते हुए, शान्ति और विवेक पूर्वक जो भी देय पदार्थ कल्पनीय स्थिति में पड़े हैं, उन्हें ही शुद्ध सरल भावों से मुनि की आवश्यकता, इच्छा एवं निर्देशानुसार बहराने(देने) चाहिए / इस विषय में एषणा के संकलित 42 दोषों का एवं गोचरी सम्बन्धी अन्य [116
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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