________________ आगम निबंधमाला अपने उन कृत्यों से जीवन व्यतीत करता था। एक बार मत्स्याहार करते कोई मत्स्य का कांटा उसके गले में फस गया / अनेक उपाय करने पर भी कोई भी उस काँटे को निकाल नहीं सका और वह शौरिकदत्त उस कंटक की असह्य वेदना से पीड़ित होकर दुःख ही दुःख में सूखकर अस्थिपंजर सा हो गया / वह खून, रस्सी एवं कीड़ों का बारंबार वमन भी करता / ऐसी स्थिति में एक बार गौतमस्वामी गोचरी करके उस मार्ग से निकलते हुए, घर के बाहर दीनता पूर्वक आक्रंदन करते हुए उस शौरिकदत्त को नरकतुल्य वेदना भोगते हुए देखा / भगवान से पूछने पर उसका पूर्वभव वर्णन भगवान ने इस प्रकार किया पूर्वभव में वह राजा के वहाँ रसोइया था / वहाँ भी उसके अनेक नौकर उसे विविध प्रकार के मांस लाकर देते थे। वह रसोइया बहुत कला पूर्वक मांस के विविध प्रकार के गोल, लम्बे, छोटे, बड़े, टुकड़े बनाकर अनेक विधियों से पकाता / अर्थात् धूप से, ठंड़ी से, हवा से, अग्नि से उन्हें पकाता था। कभी काले, नीले, पीले आदि रंगों से तो कभी आँवले, द्राक्ष एवं कबीठ, अनार आदि के रस से संस्कारित करता था। खुद भी मांस खाकर खुश होता और मित्र नामक राजा को भी खुश रखता था / इस प्रकार के पापकर्म करते हुए वह 3300 (तेतीस सो) वर्ष की उम्र में मरकर छट्ठी नरक में उत्पन्न हुआ। वहाँ से 22 सागर की स्थिति पूर्ण करके यहाँ जन्मा है और अपने पाप कर्मोदय से स्वतः दुःखी होकर आक्रन्दन कर रहा है / (1) यहाँ से 70 वर्ष की उम्र में मरकर प्रथम नरक में उत्पन्न होगा। (2) सभी नरकों एवं तिर्यंचों के भव भ्रमण प्रथम अध्ययन क समान है (3) अंत में मच्छ बनकर मारा जायेगा। (4) फिर श्रेष्ठीपुत्र बन कर संयम ग्रहण करेगा। (5) आराधना करके प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा (6) वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मुक्तिगामी बनेगा। देवदत्ता महाराणी :- (1) स्वार्थ एवं भोग की लिप्सा इतनी खतरनाक होती है कि व्यक्तिसारेसम्बन्ध भूल जाताहै औरक्रोधमें अभितप्तव्यक्ति | 11