________________ आगम निबंधमाला सड़ रही थी / नाक और कान गल रहे थे, सारे शरीर में घावों में से खराब पानी-पीप बहता था / विविध वेदना से वह कष्टोत्पादक करूणाजनक एवं दीनतापूर्ण शब्द पुकार रहा था। असहाय बना वह इधर-उधर नगर में भटकता फिरता था। उसके पास खाने-पीने के लिए मिट्टी का ठीकरा और सिकोरे का टुकड़ा था। मक्खियों के झुंड उसके साथ चलते थे। घर-घर में भीख मांग कर वह अपना जीवन यापन करता था। आचारांग सूत्र में 16 बड़े रोगों के नाम है, जो प्रश्नोत्तर भाग-१, पृष्ठ-४२, प्रश्न-३ में देखें / अन्यत्र अन्यप्रकार से 16 रोगों के नाम मिलते हैं, यथा- (1) श्वास (2) खाँसी (३)ज्वर (4) दाह (५)उदरशूल (६)भगंदर (७)अर्श(मसा) (८)अजीर्ण (९)अंधापन (10) शिरःशूल (११)अरुचि (१२)अक्षिवेदना (१३)कर्ण-वेदना (१४)खुजली (१५)जलोदर (१६)कोढ़ / आचारांग सूत्र के नामों से इन नामों में कुछ भिन्नता है, एवं क्रम की भिन्नता वाले भी हैं। श्रियक रसोइया :- (1) संसार में नौकरी व्यापार आदि आवश्यक कार्य करने भी पड़े तो उसमें तल्लीन नहीं होना चाहिए एवं अत्यंत गृद्धिभाव से आनंद नहीं मानना चाहिए / क्यों कि ऐसे परिणामों से अत्यंत दुःखदायी कर्मों का बंध होता है, यथा- श्रियक रसोइये ने कर्मबंध किया / (2) वर्तमान में ही मस्त बने रहने वाला एवं भविष्य का विचार नहीं करके यथेच्छ पाप प्रवृत्ति करने वाला अपना भविष्य अत्यन्त संकटमय बना लेता है / (3) पाँच प्रकार की मदिरा के नाम सूत्र में ये है- सुरं, महुं, मेरगं, जाई, सीधुं / (4) जीव दूसरों को खुश करने के लिए भी पापकर्म का सेवन करते हैं किन्तु कर्मों का उदय होने पर उसका फल स्वयं को ही भुगतना पड़ता है / इस अध्ययन में शौरिकदत्त नामक महा अधर्मी मच्छीमार का वर्णन है। शौरिकदत्त ने अनेक नौकर रख रखे थे, जो यमुना में जाकर अनेक जलचर मच्छ आदि को लाकर ढेर करते थे और उन्हें सुखाकर, भुनकर बिक्री करते थे / शौरिकदत्त स्वयं भी मत्स्याहार मदिरापान करके