________________ आगम निबंधमाला अनेक मर्मस्थानों में कील ठुकवा देता। (7) हाथ-पाँव की अंगलियों में सूईयाँ ठुकवा कर उससे भूमि खुदवाता / (8) गीले चमड़े से शरीर बंधवा कर फिर धूप में बिठाता और फिर चर्म सूखने पर उसे खुलवाता। पापमति धनवन्तरी वैद्य :- (1) मद्य-मांस के सेवन करने वालों की बुद्धि एवं अनुभव तदनुरूप बन जाता है / एक कुशल वैद्य होकर भी धन्वंतरि लोगों को पाप मुक्त करने के स्थान पर पाप में जोड़ने वाला बना / वह उन्नत बनने की कला प्राप्त कर जीवों की दया अनुकम्पा वृद्धि कर सकता था / किन्तु पाप मति के प्रभाव से प्रभावित बने हुए उसने और अधिक पापकृत्यों की वृद्धि की। (2) अज्ञानी जीव निर्जरा एवं पुण्य के स्थान पर कर्मबंध एवं पाप सेवन कर अपना ही जीवन बिगाड़ लेते हैं / ज्ञानी व्यक्ति साक्षात् कर्मबंध के स्थानों में भी महानिर्जरा एवं मुक्ति लाभ कर लेते हैं / अतः मुमुक्षु प्राणियों को अपने जीवन की प्रत्येक प्रवृत्ति के लिये, ज्ञान और विवेक से कसौटी करते हुए सही; हितकर, योग्य निर्णय लेकर ही उसमें प्रवृत्त होना चाहिए / (3) जगत में कई प्रकार की सावद्य-निर्वद्य चिकित्सा विधियाँ होती हैं / तथा प्राकृतिक चिकित्सा, जल, मिट्टी, स्वमूत्र और उपवास चिकित्साएँ भी प्रचलित एवं शास्त्रों ग्रंथों में वर्णित है / शास्त्र आचारांग में कहा गया ह कि पापकारी चिकित्साओं का कभी भी आचरण नहीं करना चाहिये / (4) भिक्षु के लिए तो आगम का यही घोष है कि उसे तो रोगातंक आ जाने पर आहार त्याग कर उपवास चिकित्सा करके ही द्रव्य एवं भाव रोगों से मुक्ति पाना चाहिए / घरेलू उपचार के कई नुश्खे भी निरवद्य होते हैं / सावध चिकित्सा मुनियों के लिये अनाचार अर्थात् सर्वथा अनाचरणीय है। पापमति धन्वतरी वैद्य का जीव आगामी भव में :-खुजली, कोढ़, सूजन, जलोदर, भगन्दर, बवासीर, अर्श, -खांसी, दमा आदि प्रसिद्ध रोगों से वह ग्रस्त हो गया। उसके हाथ पाँव की अंगुलियाँ [110