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________________ आगम निबंधमाला (2) व्यसनी व्यक्ति के लिए धर्माचरण दुष्कर और दुर्लभ होता है / अतः हमें स्वयं का जीवन तो पूर्ण व्यसन मुक्त रखना ही चाहिये, साथ ही अपने परिवार के बालक-बालिकाओं को बचपन से व्यसन मुक्त रहने की प्रेरणा एवं हिदायत करते रहना चाहिए / बचपन में दिए गये संस्कार प्रायः जीवन भर कामयाब रहत है। (3) दुर्गति एवं नरक गमन में प्रमुख कारण दुर्व्यसन ही है / दुर्व्यसनी व्यक्ति के सद्गति की आशा रखना केवल स्वप्न देखने के समान है। व्यसन ये हैं- 1. जुआ, शिकार(पंचेन्द्रिय हिंसा), मांसाहार, मदिरापान, वेश्यागमन, परस्त्रीगमन, चोरी / 2. भांग, बीड़ी, सिगरेट, ताश, सिनेमा, गुटका, जरदा, तम्बाकू इत्यादि का सेवन भी व्यसन विभाग ही है / चाय, कोफी आदि का प्रतिबद्ध और अमर्यादित सेवन भी व्यसन के अन्तर्गत समझना चाहिए / दुर्योधन जेलर :- (1) दूसरों को दुःख देने में आनंद मानने वाला, स्वयं भी प्रतिफल में दुःख प्राप्त करता है। किसी को अपराध में दंड देना ए क राज्य कर्तव्य तो है, किन्तु उसमें प्रमोद मानना एवं अत्यधिकरसलेना, जीवों को दारुण दुःख देकर प्रसन्न होना, उसमें तल्लीन-दत्तचित्त होना, कलुषित परिणामों का सूचक है। ऐसे कलुषित परिणाम स्वयं की आत्मा के लिये ही महान घातक है। जिसका फल स्वयंको भोगना ही पड़ता है। (2) अतः अधिकारों में एवं सांसारिक कृत्यों में भी आसक्ति, तल्लीनता और परिणामों की कलुषितता नहीं रखना चाहिए। वहाँ भी ज्ञान, विवेक एवं आत्म जागृति रखते हुए सावधानी से रहना चाहिये। पाप को पाप समझना चाहिये। - वह दुर्योधन जेलर जेल में- (1) किसी को हाथी, घोड़े, ऊंट, भेंसे, बकरे आदि जानवरों के मूत्र का पान करवाता / (2) किसी को तप्त तांबा, लोहा व शीशा आदि पिला देता / (3) किसी को विभिन्न प्रकार के बंधनो से मजबूत बांधकर दःख देता / सांकलो से बांधता शरीर को मोड़ता सिकोड़ता, शस्त्रों से चीरता-फाड़ता। (4) किसी को चाबुक आदि से मार-मार कर अधमरा कर देता / हड्डियाँ तुड़वा देता, चूरचूर करवा देता / (5) उल्टे लटकवा कर गोत खिलवाता, छेदन करता, क्षार मिश्रित तेलों से मर्दन करवाता। (6) [109
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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