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________________ आगम निबंधमाला सार्थवाह पुत्र उत्झितक:- (1) जन्म जन्मान्तर तक भी पापाचरण के संस्कार चलते रहते हैं। इसी प्रकार धर्म संस्कारों की भी अनेक भव तक परंपरा चलती है। (2) मांसाहार में आसक्त व्यक्तियों की एवं निरपराध भोले पशुओं को त्रास देने वालों की, उस भव में और भवोभव में विचित्र विडंबनाएँ होती है। बूचड़ खाने खोलने वाले एवं चलाने वाले कितने भी मस्त दिखाई देते हो किंतु वे निश्चित ही कर्म फल प्राप्ति के समय दीन-हीन एवं दुःखों से परिपूर्ण अवस्था प्राप्त करते हैं / (3) संसार में जिसकी लाठी उसकी भैंस की उक्ति प्रचलित है, वह यहाँ घटित हुई है / राजा ने कामध्वजा वेश्या को अपने स्वाधीन रखने के लिए उज्झितक को उसके घर से निकलवा दिया और अंत में मृत्युदंड की सजा भी दे दी। (4) निमित्त कुछ भी हो सकता है किन्तु मूलभूत कारण रूप में स्वयं के पूर्वकृत कर्मों का उदय तो रहता ही है / उज्झितक भी पूर्व पापों के तीव्र उदय से ही राजा द्वारा दंडित किया गया था / (5) कथा की विभिन्न घटनाओं को जानकर व्यक्ति को वैराग्य एवं अनुभव की वृद्धि करनी चाहिए / किन्तु किसी भी घटना को पढ़नेसुनने में खुशी, नाराजी या रागद्वेष अथवा हर्ष शोक नहीं करना चाहिए किन्तु गंभीर चिंतन पूर्वक स्वजीवन के सुधार की प्रेरणा लेनी चाहिए / अभग्नसेन :-(1) अंडों का व्यापार एवं आहार, पंचेन्द्रिय की हिंसा, शराब का सेवन,इनप्रवृत्तियोंवाला जीवप्रायः नरकगामी ही होता है। (2) चोर्यवृत्ति भी पापकारी प्रवृत्ति है। चोरों का यह जीवन भी भयाक्रांत और संकटपूर्ण रहता है और परभव तो महान अंधकारपूर्ण ही होता है। (3) विवेकी पुरुष इन अवस्थाओं से बचे एवंपापी प्राणियों की दुर्दशा से शिक्षा लेकर धर्ममय जीवनबनाकरशीघ्रहीसंसारभ्रमणसेमुक्तहोनेमेंप्रयत्नशील बने। शकटकुमार :-(1) इस अध्ययन में भी मांसाहार, पंचेन्द्रिय क्ध, वेश्या गमन एवंमद्य पान आदि दुर्व्यसनों का कटु परिणाम बताया गया है। अत्यंत भाग्यशाली जीवों को ही व्यसन मुक्त जीवन प्राप्त होता है / | 108
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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