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________________ आगम निबंधमाला भीविभत्सघोर कृत्यकरलेता है। इसलिएयेतीनोंअंधकहेगयेहैं-क्रोधांध, कामांध और स्वार्थान्ध / ये अंधे पुरुष भविष्य को अंधकारमय बना कर नरक निगोद आदि में दीर्घकाल तक भटकते रहते हैं। देवदत्ता,सिंहसेन, पुष्प नंदी आदि इसी प्रकार के उदाहरण है। (2) देवदत्ता पूर्व भव के अशुभ कर्मों से व्याप्त बुद्धिवाली थी। इसी कारण "विनाश काले विपरीत बुद्धि" हुई थी / अन्यथा तो उसे 80 वर्ष तो पूर्ण हो चुके थे। अब भोग लिप्सा से सास को निर्दयतापूर्वक मारना उसके लिए एक निरर्थक का अकाज ही था। उससे उसे सुफल के स्थान दुष्फल ही मिला / "हाथ भी जले होले भी नहीं मिले" ऐसी उक्ति चरितार्थ हुई / निरर्थक ही वह सभी के लिए दुःखदाई बनी / सास ने करूण वेदना पाई / खुद बेमोत करूण क्रंदन करते नरक सरीखी वेदना एवं अपमान भोगते हुए मरी और पति से पत्नि हत्या का पाप करवाया और अनेक नगरी के लोगों के कर्मबंध का निमित्त बनी / इस प्रकार एक ही अधर्मी पापी व्यक्ति कईयों का बिगाड़ा करने वाला हो जाता है / उसके इहभव परभव दोनों ही निंदित होते हैं / (3) संसार के स्वार्थपूर्ण और क्लेशयुक्त संबन्धों और परिणतियों का यहाँ जीवित चित्रण किया गया है / एक व्यक्ति 499 सासुओं को जीवित जला देता है, तो एक अस्सी वर्ष की बहु सौ वर्ष की सासु को बुरी मौत मार देती है। पति अपनी पत्नी को कितना कठोर दंड दे सकता है / राजघराने का मिला हुआ सुख साज भी एक दिन कितना भयंकर दुःखदाई नरकतुल्य बन जाता है / यह जानकर दुर्लभ मानव भव का स्वागत धर्माचरण से करके जीवन सफल कर लेना चाहिये। समय रहते स्वयं ही चंचल लक्ष्मी एवं परिवार संयोगों का त्याग कर संयम तप में पुरुषार्थ कर लेना चाहिए। तभी मानव भव का मिलना वास्तव में सार्थक होता है / (4) कर्तव्य निष्ठा का एक अनुपम आदर्श भी इस अध्ययन में अंकित किया गया है / पुष्पनंदी राजा स्वयं अस्सी वर्ष की वय तक भी अपनी सौ वर्ष की उम्र वाली माता की अनेक प्रकार की सेवा परिचर्या में अपना अधिकतम समय व्यतीत करता था / यह राजा भगवान क शासन काल में हुआ था। माता-पिता की सेवा के लिए प्रेरणा देने [113]
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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