SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम निबंधमाला समान भुजाएँ ढ़ीली लगाम समान लटकते अग्रहस्त, काँपता मस्तक, ग्लान मुखकमल, फूटे मुख वाले घड़े के समान आँखे ऊँड़ी गई हुई ऊँड़ी कुप्पी के समान दिखती थी। दीर्घ तप से इस प्रकार क्षीणं शरीर के कारण वे धन्य अणगार शरीर बल से नहीं, आत्मबल से चलते, खड़े रहते, बैठते-उठते थे / बोलने में और बोलने का विचार करते समय भी उन्हें कष्टानुभव होता था / चलते समय उनका शरीर कोयलों से भरी चलती गाड़ी के समान खड़-खड़ आवाज करता था / तो भी तपतेज से देदिप्यमान और तप लक्ष्मी से सुशोभित उनका शरीर अत्यंत प्रभावित आकर्षक लगता था / इस प्रकार प्रस्तुत सूत्र में शास्त्रकार ने तपस्या द्वारा शरीर पर होने वाला परिणाम विस्तार पूर्वक साहित्यिक भाषा में दर्शाया है / जिसका आशय तपस्या और तपस्वी के प्रति अहोभाव उत्पन्न करके मोक्षार्थी साधकों में तपस्या के संस्कारों को पुष्ट करने का है। प्रत्येक मोक्षाभिलाषी साधक शरीर के प्रति इस प्रकार मोहत्याग करके, कष्ट सहिष्णु बनकर, आचारांग कथित-आवीलए, पवीलए निप्पीलए सिद्धांत के अनुसार साधना करके मानव तन की प्राप्ति को पूर्ण सार्थक करे / ___अंतगड़ सूत्र में सभी (90) मोक्षाराधकों का, उपासक दशा सूत्र में सभी (10) श्रमणोपासक पर्याय के आराधकों का एवं इस शास्त्र में सभी (33) अणुत्तर विमान योग्य आराधना करने वाले साधकों का जीवन गुंथन कर शास्त्रकारों ने कथा साहित्य के द्वारा भव्य जीवों पर परम उपकार किया है जिसकी प्राप्ति का हमें अत्यंत अहोभाव रखकर अपने जीवन को किसी भी प्रकार की उत्तम और उत्कृष्टं आराधनामय बनाकर अलभ्य-शुभसंयोग मानव भव और वीतराग धर्म का अनुपम सदुपयोग कर लेना चाहिये / निबंध-३२ दुःखविपाक सूत्र के अध्ययनों से शिक्षा राजपुत्र मृगालोढा :-(1) शासन के माध्यम से प्राप्त सत्ता का / 106
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy