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________________ आगम निबंधमाला (10) वक्षःस्थल- छबड़ी का तला, वाँस-खपच्चिओं का पंखा, ताडपत्र का पंखा समान / / (११)भुजा- शमी की, व्हाया की(गरमाला)और आगस्तिक वृक्ष की सांगरी के समान / (12) हाथ(हथेली)- सूखा छाणा, वड़ का और पलाश का सूखा पत्ता समान / (13) हाथ की अंगुलियाँ- धूप में सूखाई हुई चना, मूंग और उड़द की फली के समान / (14) गरदन- छोटे घड़े की ग्रीवा, लोटे की ग्रीवा, सुराही की ग्रीवा समान / (15) हिचकी- सूका तुंबा फल, हिंगोटा का फल, आम की सूखी गोटली समान / (16) होठ- सूखी जलों, श्लेश(राल)गोली,अलता की गोली के समान / (17) जीभ- वड़ के, पलाश के और साग वृक्ष के पत्तों के समान (18) नाक- धूप में सूखाये आम्र,आंवला, बीजोरा फल की फाँके(लंबे टुकड़े) समान / (19) आँख- वीणा या बाँसुरी के छिद्र तथा प्रभात के निस्तेज तारे समान / (20) कान- मूला, काकड़ी, करेला की कटी हुई पतली-लंबी छाल समान / (21) मस्तक- सूखा-कच्चा तूंबा, आलु, तरबूच के समान / विशेष :- (1) ये सभी चीजें सूखी और मुरझाई हुई समझना / (2) अस्थि रहित अंग-पेट,कान,जीभ और होठ में हड्डी का कथन नहीं करना (3) गात्रयष्टी(पूर्ण शरीर)- इस तरह खून, मांस रहित सूखा, भूखाभख के कारण निर्बल और कृश होने से रूक्ष पाँव वगैरह दिखते थे। कमर करोड़रज्जू और पेट चिपके हुए होने से पाँसलिया दिखती थी। रूद्राक्ष की माला की मणियें गिन सके वैसी करोड़रज्जू की संधिय थी। गंगा तरंगों के समान हाड़का दिखने वाला वक्षःस्थल, लंबे साँप 105
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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