________________ आगम निबंधमाला गई, जिससे हड्डियाँ बोलने लगी, आवाज करने लगी, शरीर कृश हो गया, नसें सामने दिखने लगी। जिस तरह सूखे लकड़े, सूखे पत्ते या सूखे कोयलों से भरी गाड़ी में चलते समय, रुकते समय जैसी आवाज आती है उस तरह उन तपस्वीओं के शरीर की हड्डियाँ, चलते समय, खड़े रहते समय आवाज करने लगी / वे अपने आत्मबल से ही चलते, उठते, बैठते थे, इतनी दुर्बलता आ गई थी कि बोलते समय भी थकान लगती, बोलने के पहले भी मैं भाषा बोलूँ, ऐसा विचार करने मात्र से भी खेद होता था / तो भी वे तपस्वी तपोपूत-तप से पुंष्ट शरीर वाले थे। मांस, खून की अपेक्षा वे शुष्क शरीर वाले थे तो भी राख से ढंकी अग्नि के समान वे तपतेज, तपशोभा से अत्यंत सुशोभित हो रहे थे। प्रस्तुत सूत्रगत धन्ना अणगार का उपमा युक्त विशेष वर्णन : __ऊपरोक्त तीन सूत्रों में आये हुए पाठ के अतिरिक्त धन्ना अणगार के वर्णन में उपमा युक्त अंगोपांगों के वर्णन का सार इस प्रकार है(१) पाँव- वृक्ष की सूखी छाल, खड़ाउ, पुरानी पगरखी समान / (2) पाँव की अंगुलिया- धूप में सुखाई हुई चना, मूंग और उड़द की फली के समान / (3) जंघा(पिंड़ी)- कौआ, कंक, ढेणिक पक्षी की जंघा के समान। (4) घुटने- काली(कोयल)पर्व, मयूरपर्व, ढेणिकपर्व(संधि)समान। (5) उरु(साथल)- धूप में सूखी मूरझाई हुई बोर, शल्यकी, शाल्मलि की कोंपल समान / (6) कमर- ऊँट, वृद्ध बैल, वृद्ध भेंस के पाँव के समान (7) उदर (पेट)- सूखी हुई मशक, चणा सेकने की कम ऊँड़ी चपटी कड़ाही, कठोतरी के समान। (8) पसलियाँ- तासलियों की, हाथ के पंजों की और खूटियों की पंक्ति समान / (9) पीठ- मुकुट के किनारे, गोल चपटे पत्थर और लाख के गोले की पंक्ति समान / 104]