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________________ आगम निबंधमाला वे मुनि सहज समभाव से मर्यादित समय एवं मर्यादित घरों में भिक्षार्थ पर्यटन करके वापिस आ जाते / जो भी मिला या नहीं मिला उसी में पूर्ण संतुष्ट रहकर तपस्या के भावों में और कर्म क्षय करने की मस्ती में शरीर से निरपेक्ष निर्मोह होकर संयम जीवन का निर्वाह करते थे। अपने समय के भगवान के समस्त श्रमणो में ये मुनि त्याग-तप, वैराग्य, कर्मक्षय की मस्ती आदि गुणों के कारण सर्वश्रेष्ठ करणी करने वाले संत थे / ऐसा स्वयं प्रभु महावीर ने श्रेणिक राजा के पूछने पर उत्तर में फरमाया था कि हे श्रेणिक! मेरे 14 हजार श्रमणो में अभी (महान दुष्कर क्रिया और महान निर्जरा करने वाले) सर्वश्रेष्ठ सर्वाधिक करणी वाले अमुक अणगार हैं / अर्थात् अलग-अलग समय में इन दसों संतों का भगवान ने नाम लेकर उक्त कथन किया था। इस अध्ययन के सभी मुनियों ने बेले-बेले तप और आयंबिल युक्त पारणा किया था और एक महीने के संथारे की विपुलपर्वत पर आराधना की थी। विपुलपर्वत राजगृही नगरी के समीप में था / आज भी वहीं है / . तपोमय शरीर का वर्णन अनेक सूत्रों में अनेक तपस्वी साधकों के प्रसंग से आलेखित हुआ है / तथापि धन्ना अणगार का वर्णन इस शास्त्र में जो आलेखित हुआ है वह अत्यंत विशेषता भरा है / वह विशेषता यह है कि धन्ना अणगार के प्रत्येक अंगोपांग का हूबहू उपमाओं से उपमित करते हुए खुलासावार वर्णन किया गया है। अन्यत्र सभी के तपोमय शरीर का सामान्य रूप से एकाद उपमा युक्त वर्णन है / यह वर्णन मुख्यतः इस प्रकार है- (1) भगवती सूत्र में स्कंधक सन्यासी का (2) उपासकदशा सूत्र में आनंद आदि का (3) अंतगड़ सूत्र में काली आदि का वगैरह विविध आगम वर्णन यथाप्रसंग उपलब्ध है, जो इस प्रकार है- काली आर्या के या स्कंधक अणगार के अथवा आनंद श्रावक के उस(उदार) महान, विपुल(दीर्घकालीन विस्तीर्ण शोभा संपन्न) प्रयत्न साध्य (गुरु प्रदत्त),बहुमानपूर्वक ग्रहित, कल्याणकारी, आरोग्यजनकशिव, धन्य रूप, मंगल-पाप विनाशक, श्री संपन्न, तीव्र, उदार, उत्तम और महाप्रभावक उत्कृष्ट तपस्या के कारण उनका शरीर सूख गया, रूक्ष हो गया, मांस-खून रहित हो गया, हड्डिओ पर शीर्फ चमड़ी रह 103
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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