________________ आगम निबंधमाला विराधक हो जाता है, तीर्थंकर के उपदेश की परवाह न करके स्वेच्छाचारी बन जाता है और अंतिम समय में अपने अनाचार की आलोचना प्रतिक्रमण नहीं करता, वह मात्र कायक्लेश आदि बाह्य तपश्चर्या करने के कारण देवगति प्राप्त करके भी वैमानिक जैसी उच्चगति और देवत्व प्रायः नहीं पाता / भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क की पर्याय प्राप्त करता है / यहाँ नौवें दसवें वर्ग की 16 देवियाँ वैमानिक देवलोक के पहले दूसरे देवलोक में गई उसकी साधना विचारणा में अथवा आयुबंध में कुछ विशेषता हुई होंगी / अन्यथा विराधना करने वाले वैमानिक में नहीं जाते / निबंध-३१ काकदी के धन्ना अणगार का तप एवं आहार इस तीसरे वर्ग के सभी अणग्रारों का तप वर्णन एक समान है। सभी ने आजीवन बेले-बेले पारणा करने का नियम दीक्षा के दिन ही भगवान से विनयपूर्वक ग्रहण किया था / साथ ही में पारणे संबंधी विशेष अभिग्रह किया था कि- (1) बर्तन चम्मच या हाथ आदि खाद्यपदार्थ के लेप वाले होंगे तो उसी से भिक्षा लेउँगा / निर्लेप हाथ चम्मच या बर्तन से लेकर देने वाले से भिक्षा नहीं लूँगा / (2) खाद्यपदार्थ भी उज्झितधर्मा अर्थात् गृहस्थ के बचा-खुचा फेंकने योग्य, ऐसा मिलेगा तो लूँगा; सुंदर, मनोज्ञ, गृहस्थों के खाने के काम में आने वाला होगा वह नहीं लूँगा / फेंकने योग्य भी आहार गृहस्थ के देने पर लूँगा। इस प्रकार का अभिग्रह प्रत्याख्यान जीवन भर के लिये कर लिया था / अभिग्रह में स्वतः मिलने पर ही लिया जाता है / उसमें मांगा भी नहीं जाता है और गृहस्थ को कुछ भी कहे बिना वह स्वतः स्वेच्छा से वैसा आहार देवे तो लिया जाता है। अन्यथा सहज ही, आगे चल दिया जाता है। इस प्रकार का उज्झित धर्मा आहार और पानी बहुत घूमने पर भी स्वतः स्वाभाविक मिलना और गृहस्थ द्वारा देना अत्यंत मुश्किल होता है / अत: उन्हें पारणे में भी कभी कहीं आहार मिलता तो पानी नहीं मिलता। कभी पानी मिल जाता तो आहार नहीं मिलता। / 102