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________________ आगम निबंधमाला कल्पा नगरी के कालनामक गाथापति की एक पुत्री थी / उसकी माता का नाम कालश्री था / पुत्री का नाम काली था। काली नामक वह पुत्री शरीर से बड़ी बेडौल थी / अतएव उसे कोई वर नहीं मिला। वह अविवाहित ही रही / एक बार पुरुषादानीय भगवान पार्श्वनाथ का आमलकल्पा नगरी में पदार्पण हुआ / काली ने धर्मदेशना श्रवण कर दीक्षा अंगीकार करने का संकल्प किया। मातापिता ने सहर्ष अनुमति दे दी / ठाठ के साथ दीक्षा महोत्सव मनाया। भगवान ने दीक्षा प्रधान कर उसे आर्या पुष्पचूला को सौंप दिया / काली आर्या ने ग्यारह अंग शास्त्रों का अध्ययन किया और यथाशक्ति तपश्चर्या करती हुए संयम की आराधना करने लगी। किन्तु कुछ समय के पश्चात् उस काली आर्या को शरीर के प्रति आसक्ति उत्पन्न हो गई / वह बारंबार अंगोपांग धोती और जहाँ स्वाध्याय, कायोत्सर्ग आदि करती, वहाँ जल छिड़कती / साध्वी-आचार से विपरीत उसकी यह प्रवृत्ति देखकर आर्या पुष्पचूला ने उसे ऐसा न करने के लिये समझाया / वह नहीं मानी / बार बार टोकने पर वह वहाँ से निकल कर अलग उपाश्रय में रहने लगी। अब वह पूरी तरह स्वच्छंद हो गई संयम की विराधना करने लग गई। कुछ समय इसी प्रकार व्यतीत हुआ / अंतिम समय में उसने पंद्रह दिन का अनशन-संथारा तो किया किन्तु अपने शिथिलाचार की न आलोचना की और न प्रतिक्रमण ही किया। भगवान महावीर ने कहा- यही वह काली आर्या का जीव है जो काली देवी के रूप में उत्पन्न हुआ है। भविष्य एवं मुक्ति- गौतम स्वामी के पुनः प्रश्न करने पर भगवान ने कहा- देवी भव की स्थिति का अंत होने पर, काली देवी महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगी / वहाँ निरतिचार संयम की आराधना करके सिद्धि प्राप्त करेगी। महाव्रतों का विधिवत् पालन करने वाला जीव, उसी भव में यदि समस्त कर्मों का क्षय करे तो निर्वाण प्राप्त करता है / यदि कर्म शेष रह जाए तो वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है। किन्तु महाव्रतों को अंगीकार करके भी जो उनका विधिवत् पालन नहीं करता, शिथिलाचारी बन जाता है, कुशील हो जाता है, सम्यग्ज्ञान आदि का [101
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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