________________ आगम निबंधमाला इस प्रकार 10 वर्ग के 206 अध्ययन में 206 देवियों का वर्णन किया गया है। ये सभी एक भव करके महाविदेह क्षेत्र में मुक्ति प्राप्त करेगी। सार :- जिनवाणी के प्रति, जिनाज्ञा के प्रति, श्रद्धा आस्था शद्ध है, तप संयम की रुचि भी है तो बकुश वृत्ति भवपरंपरा को नहीं बढ़ाती है किन्तु अंत में सही रूप से आलोचना प्रायश्चित्त नहीं करने से जीव आराधना की गति को प्राप्त नहीं करता है। इस शास्त्र में 13 वें अध्ययन के प्रारंभ में दर्दुर देव का भगवान महावीर स्वामी की सेवा में आने का वर्णन है / यहाँ द्वितीय श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन में भी दर्दुर देव के समान कालीदेवी का भगवान के दर्शन करने आने का वर्णन है / वह इस प्रकार है राजगृह नगर में श्रमण भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। उस समय चमरेन्द्र असुरराज की अग्रमहिषी काली देवी अपने सिंहासन पर आसीन थी। उसने अचानक अवधिज्ञान का उपयोग जंबद्वीप की ओर लगाया तो देखा कि भगवान महावीर जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में, राजगृह नगर में विराजमान है / यह देखते ही काली देवी सिंहासन से नीचे उतरी, जिस दिशा में भगवान थे, उसमें सात-आठ कदम आगे गई और पृथ्वी पर मस्तक झुका कर उन्हें विधिवत् वंदना की। देवी का मनुष्य लोक में आगमन- तत्पश्चात् उसने भगवान के समक्ष जाकर प्रत्यक्ष दर्शन करने, वंदना और नमस्कार करने का निश्चय किया। उसी समय एक हजार योजन विस्तृत दिव्य यान की विक्रिया द्वारा तैयारी करने का आदेश दिया / यान विमान तैयार हुआ और वह भगवान के समक्ष उपस्थित हुई / वंदन किया, नमस्कार किया, देवों की परंपरा के अनुसार अपना नाम-गौत्र प्रकाशित किया / फिर बत्तीस प्रकार की नाट्यविधि दिखला कर वापिस लौट गई / कालीदेवी के चले जाने पर गौतमस्वामी ने भगवान के समक्ष निवेदन किया- भंते ! काली देवी को दिव्य ऋद्धि-वैभव किस प्रकार प्राप्त हुई है ? पूर्वभव- तब भगवान ने उसके पूर्व भव का वृतांत सुनाया- आमल 100