________________ 96 / आर्हती-दृष्टि नहीं हो सकती। ___धर्म-अधर्म के अस्तित्व के सूचक सिद्धान्त विज्ञान में प्राप्त हो रहे हैं / वैज्ञानिकों में सबसे पहले न्यूटन ने गति तत्त्व को स्वीकार किया। अल्बर्ट आइन्सटीन ने भी गति-तत्त्व को स्वीकृति दी। आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान से ये तथ्य और अधिक स्पष्ट हो गये हैं। गति, स्थिति और अवगाहन के साधारण कारण रूप से भिन्न-तत्त्वों को स्वीकार करने की ओर उनका भी ध्यान आकर्षित हुआ। इसके परिणामस्वरूप वे तेजोवाही ईथर क्षेत्र (field) और आकाश (space) इन तीन तत्त्वों को स्वतन्त्र रूप से स्वीकार करने लगे हैं, जिन्हें क्रमशः धर्म, अधर्म एवं आकाश स्थानीय माना जा सकता है। ___ आधुनिक वैज्ञानिकों के मतानुसार तेजोवाही ईथर सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त है और यह विद्युत् चुम्बकीय तरंगों की गति का माध्यम है। प्रकाश के तरंग सिद्धान्त के अनुसंधान के समय वैज्ञानिकों का ध्यान इस प्रकार के तेजोवाही माध्यम की ओर गया था और उन्होंने उस समय ईथर में पौद्गतिक गुणों की कल्पना की थी। ईथर में पौद्गलिक गुण आकार, स्थापकत्व आदि होते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रकाश तरंगों की विभिन्न दिशाओं में होने वाली गति पर ईथर और पृथ्वी की सापेक्ष गति के कारण प्रभाव पड़ना चाहिए। किन्तु माइकलसन एवं मार्ले के प्रयोग से यह स्पष्ट है कि प्रकाश तरंगों की गति पर इस प्रकार का कोई प्रभाव परिलक्षित नहीं होता। इससे स्पष्ट है कि ईथर पौद्गलिक नहीं है। प्रो. एडिंग्टन ने 'नेचर ऑफ फिजिकल वर्ल्ड' पुस्तक में लिखा है कि आजकल यह सर्वसम्मत है कि ईथर किसी भी प्रकार की प्रकृति (Matter) नहीं है तथा प्रकृति से भिन्न होने के कारण उसके गुण भी बिल्कुल विशिष्ट होने चाहिएं। प्रो. मैक्सवान ने रेस्टलैस युनिवर्स' में लिखा है कि माइकलसन और माले के प्रयोग एवं सापेक्षवाद के सिद्धान्त से यह स्पष्ट है कि ईथर साधारण पार्थिव वस्तुओं से भिन्न होना चाहिए। वैज्ञानिक अभी तक सूर्य, चन्द्र ग्रह आदि की स्थिरता का कारण और वस्तुओं के पृथ्वी की ओर गिरने का कारण गुरुत्वाकर्षण मानते रहे हैं / किन्तु अब गुरुत्वाकर्षण और विद्युत् चुम्बकीय शक्ति के कार्य के माध्यम स्वरूप क्षेत्र की ओर उनका ध्यान गया है। ___ नशांबर्ड ने एक स्थान पर लिखा है कि हम नहीं समझ पा रहे हैं कि बिना शक्ति के दूरवर्ती स्थान पर कार्य कैसे किया जा सकता है। अभी तक उसमें वे पौद्गलिक गुण मान रहे थे किन्तु पौद्गलिक मानने से उनके मार्ग में कठिनाइयां