________________ द्रव्य एवं अस्तिकाय की अवधारणा / 93 ' परिणामी गतेधर्मो भवेत्पुद्गलजीवयोः अपेक्षाकारणाल्लोके मीनस्येव जलं सदा / / दीपिका में लिखा है—'गतिसहायो धर्मः' तत्त्वार्थ सूत्रकार ने एक ही सूत्र में धर्मअधर्म के उपकार की चर्चा की है—'गतिस्थित्युपग्रहो धर्माधर्मयोरुपकारः / मूल आगम ग्रन्थों में ही पंचास्तिकाय का विशद विवेचन प्राप्त है / गौतम भगवान् से पूछते हैंभगवन् ! पंचास्तिकाय का स्वरूप क्या है ? 'पंच अत्थिकाया पण्णत्ता तं जहाधम्मत्थिकाए अधमत्थिकाए"। धम्मत्थिकाए णं भते ! कति वण्णे' कतिगंधे ! कति रसे। कति फासे / गोयमा। अवण्णे अगंधे, अरसे, अफासे, अरुवी, अजीवे, सासए, अवट्ठिए लोगदव्वे।' इसी धर्मास्तिकाय को व्याख्यायित करते हुए भगवती में कहा गया है 'दव्वओ णं धम्मत्थिकाए एगे दवे खेत्तओ लोगप्पमाणमेत्ते कालओ न कयाइ न आसि, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भविसुं च भवति च भविस्सई च धुवे णियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए णिच्चे / भावओ-अवण्णे अगंधे, अरसे, अफासे / गुणओ-गमण गुणे / अधम्मत्थिकाए-ठाणगुणे।' अधर्मास्तिकाय का स्वरूप भी धर्मास्तिकाय जैसा ही है। मात्र उसके विशेष गुण में अन्तर है / धर्म गति सहायक अधर्म जीव एवं पुद्गल की स्थिति में उदासीन या सापेक्ष कारण है / आचार्य कुन्दकुन्द ने कहा है जह हवदि धम्मदव्वं तह तं जाणेह दव्यमधमक्खं। - ठिदिकिरियाजुत्ताणं कारणभूदं तु पुढवीव॥ द्रव्यानुयोग तर्कणा में भी कहा है स्थितिहेतुरधर्म: स्यात्परिणामी तयोः स्थितेः। सर्व साधारणो धर्मो गत्यादिद्रव्ययोर्द्वयोः / / धर्म, अधर्म द्रव्य से एक द्रव्य क्षेत्र से लोक परिणाम काल से अनादि अनन्त भाव से अमूर्त गुण से क्रमशः जीव व पुद्गल की गति एवं स्थिति में सहायता करना / गौतम .. ने भगवान् महावीर से पूछा भन्ते ! गति सहायक द्रव्य धर्मास्तिकाय से जीवों को