SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 90 / आर्हती-दृष्टि - सांख्यदर्शन के अनुसार सृष्टि से लेकर जो प्रलय तक रहता है, वह पारमार्थिक एवं तात्विक सत् है / तथा घट, पट आदि व्यावहारिक सत् हैं / जैन के अनुसार भी सत् को द्विधा माना जाता है— व्यवहार और निश्चय / घट-पट आदि व्यावहारिक द्रव्य हैं तथा परमाणु आदि पारमार्थिक हैं / अर्थपर्याय मौलिक है, व्यंजन पर्याय व्यावहारिक .. जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य 6 भागों में विभक्त है। संक्षेप में उसे दो प्रकार का भी कहा जा सकता है। दो से कम नहीं हो सकता। जैसे वेदान्त ब्रह्म को ही एक तत्त्व के रूप में स्वीकार करता है। विश्व-व्यवस्था की समायोजना के सन्दर्भ में 6 द्रव्यों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन दृष्टि के अनुसार यह जगत् न केवल परिवर्तन रूप है, न स्थिर रूप / परिवर्तनशीलता के साथ यह अनादिनिधन भी है / जैन चिन्तन के अनुसार इस जगत् में पांच अस्तिकाय अथवा काल सहित धर्मादि छः द्रव्य मूल हैं। ‘पञ्चास्तिकायमयो लोकः' अथवा 'षड्द्रव्यात्मको लोकः / ' यह विश्व के सम्बन्ध में जैन की मान्यता है / जैन दर्शन में विश्व के लिए लोक शब्द व्यवहत हुआ है। , ____ पञ्चास्तिकाय की अवधारणा प्राचीन है ।आगमों में स्थान-स्थान पर विश्व-व्यवस्था के सन्दर्भ में अस्तिकाय शब्द का प्रयोग हुआ है। अस्तिकाय जैन दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण एवं पारिभाषिक शब्द है। अस्ति एवं काय इन दो शब्दों के संयोग से अस्तिकाय शब्द परिनिष्पन्न हुआ है। प्रदेश-प्रचय को अस्तिकाय कहते हैं। जो अस्तिकाय है, वही सत् है / 'अस्तिकायः प्रदेशप्रचयः' तत्त्वार्थसूत्र के प्रसिद्ध टीकाकार आचार्य सिद्धसेनगणि ने अपनी तत्त्वार्थभाष्यानुसारिणी टीका में अस्तिकाय शब्द की नवीन व्याख्या प्रस्तुत की है। उनके अनुसार काय शब्द उत्पाद एवं व्यय की ओर संकेत करता है तथा अस्ति पद से ध्रुवता का संकेत हो रहा है / अस्तिकाय शब्द वस्तु की त्रयात्मकता को प्रकट करता है / अस्तिकाय शब्द से ज्ञात होता है कि धर्म आदि पाँचों द्रव्य नित्य तथा अस्तित्ववान् हैं तथा वे परिवर्तन के विषय भी बनते हैं। जैन का अस्तिकाय वेदान्त के ब्रह्म एवं सांख्य के पुरुष की तरह कूटथ नित्य नहीं है / तथा बौद्ध के पर्याय की तरह सर्वथा क्षणिक भी नहीं है। अद्वैत में तत्त्व का विस्तार नहीं है / मात्र एक ब्रह्म की ही वहां परिकल्पना है। बौद्धों में द्रव्य का वर्गीकरण नहीं है। सांख्य 25 तत्त्व, नैयायिक 16 तत्त्व तथा वैशेषिक 6 पदार्थों को मानता है। जैन दर्शन का जगत् विश्लेषण पांच अस्तिकाय अथवा षड्द्रव्यों के रूप में उपलब्ध है / जैन आगम साहित्य में तत्त्व के चार वर्गीकरण ,
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy