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________________ द्रव्य एवं अस्तिकाय की अवधारणा / 87 ग्रन्थ में अन्यत्र कहा गया है भिन्न-भिन्न गुणों के उत्पन्न होने पर भी जिसकी मौलिकता का नाश नहीं होता, वह द्रव्य है। सांख्य दर्शन में धर्मी को त्रिकालयुक्त माना है। वेदान्त दर्शन ब्रह्म के रूप में कूटस्थ अद्वैत सत्ता को ही द्रव्य रूप में स्वीकार करता है। बौद्ध दर्शन क्षणिकवादी होने से उसके दर्शन में स्थायी एवं आधारवान किसी भी द्रव्य की कल्पना ही नहीं है / पर्याय ही उस दर्शन में सत्य है। ___ वैशेषिक दर्शन सात पदार्थों को स्वीकार करता है / इन पदार्थों में सर्वप्रथम स्थान द्रव्य को प्राप्त है। द्रव्य की प्राथमिकता का कारण यह है कि यह अन्य पदार्थों का आधारभूत पदार्थ है। द्रव्य को परिभाषित करते हुए कहा गया है—'क्रियागुणवत् समवायिकारणमिति द्रव्यलक्षणम्' अर्थात गुण तथा क्रिया जिसमें समवाय सम्बन्ध से रहते हों तथा जो समवायि कारण हो, वही द्रव्य कहलाता है / वैशेषिक के अनुसार गुण और क्रिया द्रव्य के कार्य है / अतः उत्पत्ति के प्रथम समय द्रव्य निर्गुण एवं निष्क्रिय होता है / द्रव्य बाद में गुणवान् एवं क्रियावान् बनता है / समवायि कारण का अर्थ है, जिसमें समवाय सम्बन्ध से कार्य उत्पन्न होते हैं / वैशेषिक नौ द्रव्य मानता है / जिनमें चार पृथ्वी, जल, तेज तथा वायु अनित्य द्रव्य हैं एवं आकाश, दिक्, आत्मा, मन एवं काल पांच नित्य द्रव्य हैं। ... जैन दर्शन में सत्, द्रव्य, तत्त्व, तत्त्वार्थ एवं पदार्थ आदि शब्दों का प्रयोग प्रायः एक ही अर्थ में होता रहा है / जो सत् रूप पदार्थ है, वही द्रव्य है / 'सद् द्रव्यलक्षणम्' उत्तराध्ययन सूत्र में 'गुणाणमासओ दव्वं' गुणों के आश्रय को द्रव्य कहा गया है। यद्यपि उत्तराध्ययन के उसी अध्ययन में ज्ञान के विषयभूत द्रव्य, गुण एवं पर्याय का उल्लेख तथा अनुयोग द्वार में द्रव्य, गुण एवं पर्याय का निरूपण है। किन्तु द्रव्य के लक्षण में दोनों ही सूत्रों ने गुण को ही स्थान दिया है। ___वाचकमुख्य उमास्वाति की द्रव्य परिभाषा में विकास प्राप्त होता है / उन्होंने गुण के साथ पर्याय को भी द्रव्य में स्वीकार किया है / 'गुणपर्यायवद् द्रव्यम्' जो गुण और पर्याय से युक्त हो, वह द्रव्य है। गुणों को परिभाषित करते हुए वाचक ने कहा है-'द्रव्याश्रयाः निर्गुणा गुणाः।' द्रव्य जिनका आश्रय है तथा जो स्वयं अन्य गुणों को आश्रय नहीं देते, वे गुण हैं। - द्रव्य एवं गुण की इन परिभाषाओं में पुनरुक्ति परिलक्षित होती है / द्रव्य किसे कहते हैं ? जो गुणों का आश्रय है / गुण किसे कहते हैं जो द्रव्य के आश्रित हैं / तत्त्वार्थ - सूत्र में ही अन्यत्र द्रव्य को परिभाषित करते हुए कहा गया है—'उत्पादव्ययधौव्ययुक्तं
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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