________________ ___ सम्यग्दर्शन-स्वरूप विमर्श / 85 जीव-अजीव आदि यथार्थ पदार्थों में श्रद्धा होना सम्यक्त्व है। उत्तराध्ययन के अनेक स्थलों पर सम्यक्त्व विचारणा उपलब्ध है। जिसके उपदर्शन के लिए एक स्वतन्त्र प्रबन्ध अपेक्षित है। प्रज्ञापना में भी सम्यक्त्व की विशद् चर्चा है / भगवती, स्थानांग, अनुयोगद्वार आदि आगमों में तथा आगमेत्तर अन्य जैन ग्रन्थों में सम्यक्त्व की विस्तार से चर्चा हुई है। जैन दर्शन का सम्यक्त्व प्राणतत्त्व है। जैन दर्शन में तात्त्विक श्रद्धा की तरह व्यावहारिक श्रद्धा के साथ भी सम्यक्त्व का सम्बन्ध जोड़ा गया है। अरहंतो महदेवो जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो। जिणपण्णत्तं तत्तं इयं सम्मत्तं मए गहियं // देव, गुरु एवं जिनप्रज्ञप्त धर्म में श्रद्धा भी साधना के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण __ आज के आस्थाहीन, कुण्ठाग्रस्त, भयत्रस्त युग में जीवन विकास के क्षेत्र में आस्था की महनीय आवश्यकता है / मोहाविष्ट चेतना योग से ऊर्ध्वारोहण कर योग में स्थिर हो यह काम्य है। आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त कर सके इसके लिए सम्यक् श्रद्धा एवं आत्मदर्शन की महती आवश्यकता है।