________________ 25. 74 / आर्हती-दृष्टि हो सकती है / प्रेक्षा-ध्यान के शिविरों में विभिन्न उद्देश्यों से अनुप्रेक्षा के प्रयोग करवाये जाते हैं / उनका लाभ भी सैंकड़ों-सैंकड़ों व्यक्तियों ने प्राप्त किया है / अतः आज अपेक्षा इस बात की है कि अनुप्रेक्षा के बहु-आयामी स्वरूप को हृदयंगम करके स्व-पर कल्याण के कार्यक्रम में उसे नियोजित किया जाये। सन्दर्भ 1. योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः, पा. यो. सू. 1/2 2. काय-वाङ्-मनो-व्यापारो योगः। 3. योगविंशिका, श्लो. 1 .. 4. अमूर्त्तचिन्तन, पृ. 1 5. शरीरादीनां स्वभावानुचिन्तनमनुप्रेक्षा। सर्वार्थसिद्धि 9/2 6. सुतत्तचिन्ता अणुप्पेहा। . कार्तिकेयानुप्रेक्षा, श्लो. 97 7. अनु पुनः पुनः प्रेक्षणं चिन्तनं स्मरणमनित्यादिस्वरूपाणामित्यनुप्रेक्षा। कार्तिकेय, पृ. 2 8. किं पलवियेण बहुणा जे सिद्धा णरवरा गये काले। सिज्झिहहि जे वि भविया तज्जाणह तस्समाहप्पं // .. वारस अणुवेक्खा, गा. 90 9. द्वादशापि सदा चिन्त्या अनुप्रेक्षा महात्मभिः / तद् भावना भवत्येव कर्मणां क्षयकारणम् // पंचविंशतिका, श्लो. 42 १०.विध्याति कषायाग्नि विगलित रागो विलीयते ध्वान्तम् / उन्मिषति बोधदीपो हृदि पुंसां भावनाभ्यासात् / / . .. ज्ञानार्णव, भा. अ. 192 11. (क) स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरिषजयचारित्रैः। तत्त्वार्थ, सूत्र 9/2 (ख) गुत्तीसमिदी धम्मो अणुवेक्खा.... संवरहेदूविसेसेण। ___ कार्तिकेयानुप्रेक्षा 96 12. (1) संगविजयणिमित्तमणिच्चताणुप्पेहं आरभते / (2) धम्मे थिरताणिमित्तं असरणतं चिन्तयति। (3) संसारुव्वेगकरणं संसाराणुप्पेहा। (4) सम्बन्धिसंगविजितायएगत्तमणुपेहेति। दशवै अग. चूर्णि, पृ. 18