________________ 72 / आर्हती-दृष्टि के आधार पर अनेक अनुप्रेक्षाओं का निर्माण हुआ है एवं उनके प्रयोगों से वाञ्छित परिणाम भी प्राप्त हुए हैं। ___ स्वभाव परिवर्तन के लिए प्रतिपक्ष भावना का प्रयोग बहुत लाभदायी है / प्रतिपक्ष की अनुप्रेक्षा से स्वभाव, व्यवहार और आचरण को बदला जा सकता है / मोह-कर्म के विपाक पर प्रतिपक्ष भावना का निश्चित प्रभाव होता है। दशवैकालिक में इसका स्पष्ट निर्देश प्राप्त है। उपशम की भावना से क्रोध, मृदुता से अभिमान, ऋजुता से माया और संतोष से लोभ के भावों को बदला जा सकता है / आचारांग सूत्र में भी ऐसे निर्देश प्राप्त हैं जो पुरुष अलोभ से लोभ को पराजित कर देता है, वह प्राप्त कामों में निमग्न नहीं होता। ___ अध्यात्म के क्षेत्र में प्रतिपक्ष भावना का सिद्धान्त अनुभव की भूमिका में सम्मत है। जैन मनोविज्ञान के अनुसार मौलिक मनोवृत्तियां चार हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ / यह मोहनीय कर्म की औदयिक अवस्था है। प्रत्येक प्राणी में जैसे मोहनीय कर्म का औदयिक भाव होता है वैसे ही क्षायोपशमिक भाव भी होता है। प्रतिपक्ष की भावना के द्वारा औदयिक भावों को निष्क्रिय कर क्षायोपशमिक भाव को सक्रिय कर / दिया जाता है / महर्षि पतञ्जलि ने भी प्रतिपक्ष भावना के सिद्धान्त को मान्य किया है। उनका अभिमत है कि अविद्या आदि क्लेश प्रतिपक्ष भावना से उपहत होकर तनु हो / जाते हैं / क्लेश प्रतिप्रसव (प्रतिपक्ष) के द्वारा हेय है / अनुप्रेक्षा के प्रयोग क्लेशों को तनु करते हैं। ___ अनुप्रेक्षा संकल्प शक्ति का प्रयोग है। अनुप्रेक्षा के प्रयोग से संकल्पशक्ति को बढ़ाया जा सकता है। व्यक्ति जैसा संकल्प करता है, जिन भावों में आविष्ट होता है, तदनुरूप उसका परिणमन होने लगता है / जंजं भावं आविसइ तं तं भावं परिणमई"। संकल्प शक्ति के द्वारा मानसिक चित्र का निर्माण हो गया तो उस घटना को घटित होना ही होगा। संकल्प वस्तु के साथ तादात्म्य हो जाने से पानी भी अमृतवत् विषापहारक बन जाता है। आचार्य सिद्धसेन ने कल्याण मन्दिर में इस तथ्य को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त किया है। तत्त्वानुशासन में कहा गया है कि व्यक्ति जिस वस्तु का अनुचिन्तन करता है वह तत् सदृश गुणों को प्राप्त कर लेता है। परमात्मस्वरूप को ध्यानाविष्ट करने से परमात्मा, गरुड़ रूप को ध्यानाविष्ट करने से मरुड़ एवं कामदेव के स्वरूप को ध्यानाविष्ट करने से कामदेव बन जाता है / पातञ्जल योगदर्शन में / भी यही निर्देश प्राप्त है / हस्तिबल में संयम करने पर हस्ति सदृश बल हो जाता है। गरुड़ एवं वायु आदि पर संयम करने पर ध्याता तत्सदृश बन जाता है।