________________ जैनयोग में अनुप्रेक्षा / 71 लिए एकत्व अनुप्रेक्षा का अभ्यास किया जाता है / इसी प्रकार अन्य अनुप्रेक्षाओं का विशिष्ट प्रयोजन है। - उत्तराध्ययन सूत्र में अनुप्रेक्षा के परिणामों का बहुत सुन्दर वर्णन उपलब्ध है। अनुप्रेक्षा से जीव क्या प्राप्त करता है, गौतम के इस प्रश्न के समाधान में भगवान् महावीर ने अनुप्रेक्षा के लाभ बताये हैं। वहां पर अनुप्रेक्षा के छह विशिष्ट परिणामों का उल्लेख है 1. कर्म के गाढ़ बन्धन का शिथिलीकरण। 2. दीर्घकालीन कर्म स्थिति का अल्पीकरण। 3. तीव्र कर्म विपाक का मंदीकरण। 4. प्रदेश परिमाण का अल्पीकरण / 5. असाता वेदनीय कर्म के उपचय का अभाव। 6. संसार का अल्पीकरण। - अनुप्रेक्षा चिन्तनात्मक होने से ज्ञानात्मक है, ध्यानात्मक नहीं है। अनित्य आदि विषयों के चिन्तन में जब चित्त लगा रहता है तब वह अनुप्रेक्षा और जब चित्त उन विषयों में एकाग्र बन जाता है, तब वह धर्म्य-ध्यान कहलाता है" / ध्यान शतक में स्थिर अध्यवसाय को ध्यान एवं अस्थिर अध्यवसाय को चित्त कहा है और वह चित्त . भावना, अनुप्रेक्षा अथवा चिन्तनात्मक रूप होता है। .. . स्वाध्याय के पाँच भेदों में अनुप्रेक्षा भी एक है" / सूत्र के अर्थ की विस्मृति न हो इसलिए अर्थ का बार-बार चिन्तन किया जाता है / अर्थ का बार-बार चिन्तन ही अनुप्रेक्षा है / अनुप्रेक्षा में मानसिक परावर्तन होता है वाचिक नहीं होता" / धर्म्यध्यान एवं शुक्ल-ध्यान की भी चार-चार अनुप्रेक्षा बताई गई है / स्वाध्यायगत अनुप्रेक्षा, ध्यानगत अनुप्रेक्षा एवं बारह अनुप्रेक्षा में अनुप्रेक्षा शब्द का प्रयोग हुआ है किन्तु सन्दर्भ के अनुकूल उनके तात्पर्यार्थ में कथंचित् भिन्नता है। प्राचीन ग्रन्थों में अनुप्रेक्षा का तत्त्व-चिन्तनात्मक रूप उपलब्ध है। यद्यपि धर्म्य एवं शुक्ल ध्यान की अनुप्रेक्षाओं का भी उल्लेख है किन्तु उनका भी चिन्तात्मक रूप ही उपलब्ध है / प्रेक्षा ध्यान के प्रयोगों में अनुप्रेक्षा के चिन्तनात्मक स्वरूप के साथ ही उसका ध्येय के साथ तदात्मकता के रूप को भी स्वीकार किया गया है। अनुप्रेक्षा का प्रयोग सुझाव पद्धति का प्रयोग है / आधुनिक विज्ञान की भाषा में इसे सजेस्टोलॉजी कहा जा सकता है / स्वभाव परिवर्तन का अनुप्रेक्षा अमोघ उपाय है / अनुप्रेक्षा के द्वारा जटिलतम आदतों को बदला जा सकता है / प्रेक्षा ध्यान में स्वभाव परिवर्तन के सिद्धान्त