________________ 68 / आर्हती-दृष्टि मुक्त रहने की पद्धति है। दोनों में एकाग्रता का अभ्यास जरूरी है, किन्तु दोनों का प्रयोजन भिन्न है। अनुप्रेक्षा सत्य अनुभूति की प्रक्रिया है / विचय तथा अनुप्रेक्षा के द्वारा व्यक्ति अज्ञात को ज्ञात, परोक्ष को प्रत्यक्ष करने में सफलता प्राप्त कर सकता संदर्भ-सूची 1. भगवती, 14/84-88 / 2. प्रशमरति-प्रकरण, श्लोक 265 / 3. धर्मादनपेतं धर्म्यम् ।तत्त्वार्थ-वार्तिक, 4. वत्थुसहावो धम्मो। 5. आत्मनः परिणामो... ।तत्त्वानुशासन, ५२वाँ श्लोक। 6. तत्त्वार्थवार्तिक 9/36 / 7. अतीत का अनावरण। पृ. 83. 8. एकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम्। तत्त्वार्थ-सूत्र 9/27, 9. सम्बोधि, 12/34 / 10. तत्त्वार्थभाष्य, 9/37 / 11. तत्त्वार्थभाष्यानुसारिणी टीका, 9/37 / 12. सम्बोधि, 12/37 13. ठाणं, 4/66 / 14. ध्यान शतक, श्लोक 67 / 15. सम्बोधि, 12/38-39 / 16. भ्रम-विध्वंसन। 17. ज्ञाताधर्मकथा, 1/170 / 18. ज्ञानार्णव, 27/23 -34 / 19. ठाणं, 4/67 / 20. ध्यान द्वात्रिंशिका, २७वाँ श्लोक। 21. ठाणं, 4/68 22. पातञ्जल, 1/33 / 23. अभिधम्मत्थसंगहो, ९वाँ अध्याय / 24. तत्वार्थवार्तिक, वृति९/३७ /