________________ विषय-ध्यान और अनुप्रेक्षा / 67 जागरण के पश्चात् अनुप्रेक्षा का प्रयोग कैसे करना चाहिए / जब शक्ति जागरण में इसका सहारा लिया जाता है तब खतरा पैदा नहीं होता है। विचय ध्यान के द्वारा , सचाइयों का ज्ञान होता है / अनुप्रेक्षा के द्वारा भ्रान्तियों का निरसन होता है / अनुप्रेक्षा स्वभाव परिवर्तन का सत्र है / जिस आदत का परित्याग करना है, पहले उसका विश्लेषण किया जाता है। आज के मनोवैज्ञानिकों ने सेल्फ एनालिसिस को चिकित्सा पद्धति के रूप में स्वीकार किया है। रोगी से उसकी स्थिति का विश्लेषण करवाया जाता है। वैसे ही धार्मिक क्षेत्र में अनुप्रेक्षा का प्रयोग है / क्रोध को छोड़ना है तो सबसे पहले उसके उपाय के बारे में, फिर उसके परिणाम के बारे में अनुप्रेक्षण किया जाता है और उन विश्लेषणों के द्वारा व्यक्ति के क्रोध की पकड़ छट जाती है। विचय-ध्यान से जो सचाई उपलब्ध हुई है उसका योग करना अनुप्रेक्षा है। धर्म्य-ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं हैं"- . . 1. एकत्वानुप्रेक्षा—अकेलेपन का अनुभव। 2. अनित्यानुप्रेक्षा–संयोग का अनित्यता का अनुभव। 3. अशरणानुप्रेक्षा—अत्राणता का अनुभव। 4. संसारानुप्रेक्षा-संसार के भवभ्रमण की अनुप्रेक्षा / महर्षि पतञ्जलि ने चित्त-प्रसाद के लिए मैत्री, करुणा, मुदिता और अपेक्षा इन चार भावनाओं का उल्लेख किया है। चैतसिक मल प्रक्षालन के लिए अनुप्रेक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बौद्ध साहित्य में भी अनुप्रेक्षा का प्रयोग हुआ है / वहां अनुप्रेक्षा के स्थान पर अनुपश्यना शब्द प्रयुक्त है। दोनों शब्द एक ही आशय को अभिव्यक्त कर रहे हैं। अनित्यानुपश्यना, दुःखानुपश्यना, अनात्मानुपश्यना का सम्बन्ध क्रमशः - अनिमित्तानुपश्यना अपणिहितानुपश्यना तथा सुयंतानुपश्यना के साथ है। अनुप्रेक्षा के संदर्भ में एक प्रश्न उभारा गया कि अनुप्रेक्षाओं का पृथक् निर्देश क्यों किया गया? ये तो धर्म्य ध्यान के अन्तर्गत ही हैं। इसका समाधान प्रस्तुत करते हुए कहा गयाअन्प्रेक्षा विकल्पात्मक होने के कारण धर्म्य-ध्यान से भिन्न है। अनित्यता का चिन्तन ज्ञानात्मक विचार है वही अनित्य अनुप्रेक्षा है तथा जब वहां पर चित्त निरुद्ध हो जाता है वही धर्म्य-ध्यान की अवस्था है। किन्तु यहां एक विचारणी बिन्दु है कि यदि विचय और अन्प्रेक्षा में ज्ञान और एकाग्रता का ही भेद मानें तो विचय और अनुप्रेक्षा का प्रकार एक ही होता, वास्तव में उनके प्रकार भिन्न हैं / अनित्य आदि अनुप्रेक्षा का आज्ञा आदि विचयों से सीधा सम्बन्ध नहीं है। प्रेक्षा-ध्यान के संदर्भ में इन दोनों का सम्बन्ध खोजा गया है। उसका निष्कर्ष यह है कि विचय धर्म या सत्य को खोजने की पद्धति है। अनुप्रेक्षा सत्य की खोज के साथ होनेवाले प्रिय-अप्रिय संवेदनों से