________________ अर्हत् की सर्वज्ञता / 61 किया है। भले ही वह सर्वज्ञता किसी में भी क्यों न रहे / न्याय वैशेषिक दर्शन ईश्वर के ज्ञान को उत्पाद विनाश से रहित त्रैकालिक युगपत् सब पदार्थों को जानने वाला मानते हैं। अत: ईश्वर सर्वज्ञ है / ईश्वर से भिन्न आत्माओं में भी वह सर्वज्ञता स्वीकार करता किन्तु सब मुक्त होने वाली आत्मा सर्वज्ञ हो यह अनिवार्य शर्त नहीं है / मोक्ष जाने के बाद भी सर्वज्ञ योगियों में पूर्ण ज्ञान शेष नहीं रहता क्योंकि वह ज्ञान ईश्वर ज्ञान की तरह नित्य नहीं है योगजन्य होने से वह अनित्य है / निष्कर्षत: न्याय वैशेषिक दर्शन जो मुक्ति को मानता है उसके अनुसार मुक्ति के लिए क्लेशों का नाश होना आवश्यक है। सर्वज्ञता का होना आवश्यक नहीं है। सांख्य योग और वेदान्त सम्मत सर्वज्ञत्व का स्वरुप भी वैसे ही है जैसा न्याय वैशेषिक मानते हैं। सांख्य और योग दर्शन ईश्वर को स्वीकार करते है तथा उससे सर्वज्ञ भी मानते हैं। अपरिणामी चेतन पुरुष में सर्वज्ञता का समर्थन न करने से बुद्धि तत्व में ही ईश्वरीय सर्वज्ञत्व का समर्थन करता है। सांख्य, योग और वेदान्त दर्शन में भी मोक्ष प्राप्ति के लिए सर्वज्ञत्व अनिवार्य शर्त नहीं है बिना सर्वज्ञता के भी मोक्ष प्राप्ति सम्भव है। सांख्य के अनुसार मुक्ति का हेतु विवेकख्याति है। विवेकख्याति होने से मोक्ष अवश्य हो जाता है / सांख्य का कहना है-'ज्ञानस्यैव पराकाष्ठा वैराग्य तन्नातरीयकं कैवल्यम्' ज्ञान की पराकाष्ठा वैराग्य है और कैवल्य उसका अविनाभावि है / यह कैवल्य आत्मा की वीतराग अवस्था की ही सूचना देता है सर्वज्ञता की नहीं। बौद्ध दर्शन की दो शाखाएं है-हीनयान और महायान / हीनयान शाखा के अनुसार मुक्ति के लिए अज्ञान का नाश होना अनिवार्य नहीं है, अक्लिष्टज्ञानम् / क्लेशों का नाश हो जाने से मुक्ति हो जाती है / 'क्षयानुत्पादज्ञाने बोधि: / ' मेरा आसव क्षय हो गया तथा उसका कभी उत्पाद नहीं होगा उसका ऐकान्तिक और आत्यन्तिक नाश हो गया है यही बोधि है, वीतरागता है / बौद्ध दर्शन के इतिहास को देखे तो ज्ञात होता है कि वह प्रारम्भ से सर्वज्ञवादी नहीं था धर्मज्ञवादी था। स्वयं बुद्ध ने बोधि प्राप्त होने के बाद कहा मेरा शिष्य कहाँ है / यदि वे सर्वज्ञ होते तो ऐसा प्रश्न क्यों पूछते / बाद के आचार्यों ने उनको सर्वज्ञ कहना शुरु किया। शान्तरक्षित सर्वज्ञता को सिद्ध करते हुए कहते है कि चित् स्वयं प्रभास्वर है अतएव स्वभाव से प्रज्ञाशील है / क्लेशावारण और ज्ञेयावरण ये आगन्तुक है / नैरात्मय दर्शन के द्वारा भावना बल से स्थायी सर्वज्ञता प्राप्त हो जाती है। संक्षेप में हम यही कह सकते हैं कि बोद्ध दर्शन में मोक्ष के लिए सर्वज्ञता अनिवार्य शर्त नहीं थी बोधि होना आवश्यक था और उस वीतरागता से मोक्ष प्राप्त हो जाता है।