________________ 60 / आर्हती-दृष्टि है अत: अर्हत् ही सर्वज्ञ है इस कारिका के द्वारा आचार्य ने अन्ययोग का व्यवच्छेद करके अर्हत् को ही सर्वज्ञ स्वीकार किया है। जैसा कि हमने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि मीमांसा दर्शन के अतिरिक्त सभी भारतीय दर्शन सर्वज्ञता को स्वीकार करते है। जैन दर्शन के अनुसार आत्माएं अनादि काल से संसार में है तथा वे साधना के द्वारा अत्यन्त प्रकर्ष को प्राप्त करती हैं। वे सदैव मुक्त एवं सर्वज्ञ नहीं है जैसा कि सांख्य ईश्वर को मानता है। इसके विपरित अन्य भारतीय दर्शन सबको सर्वज्ञ होने की अनुमति नहीं देते उनके अनुसार ब्रह्म या ईश्वर सर्वज्ञ है जो अनादि मुक्त हैं / सांख्य न्याय-वैशेषिक ईश्वर को सर्वज्ञ मानते हैं। अन्य आत्माएं भी योगज सर्वज्ञता को प्राप्त कर सकती है। ईश्वर में सर्वज्ञता नित्य है / इस्लाम, ईसाई, यहूदी भी धर्म भी ईश्वर को स्वीकार करते हैं और उसे सर्वज्ञ मानते है। जैन दर्शन ईश्वरत्व को स्वीकार करता है पर वह विभूति रूप ईश्वर को स्वीकार करता है किन्तु सृष्टि कर्तृत्व के रूप में ईश्वर को स्वीकार नहीं करता। बौद्ध भी ईश्वर , को सृष्टिकर्ता नहीं मानते है / सांख्य के अनुसार ईश्वर ज्ञाता एवं उपदेष्टा है स्रष्टा नहीं। जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक आत्मा में ईश्वरत्व शक्ति विद्यमान है / उस शक्ति से प्रत्येक आत्मा ईश्वर एवं सर्वज्ञ बन सकती है। नन्दी का कथन है 'अक्खरस्स अणंततमोभागो निच्चुघाडियो हवइ' आज की भाषा में यही Cosmological freedom है। जो वार्य-कारण की परम्परा चल रही है Natural phenomena अर्थात् जो नियतिवाद है उसका सर्जक पुरुष ही है और ,वही पुरुष अपने पुरुषार्थ के द्वारा उस कार्य-कारण की धाराओं को मोड़ सकता है और Cosmological freedom से सम्पूर्ण सर्वज्ञता को प्राप्त कर सकता है। अन्य भारतीय एवं पाश्चात्य दर्शनों के अनुसार वह Cosmological freedom मात्र ईश्वर में है जबकि जैन के अनुसार सब जीवों में है अत: इसी के द्वारा जीव अपने में अन्तर्निहित सर्वज्ञता को प्राप्त कर सकते हैं। सर्वज्ञता और मोक्ष ___ सर्वज्ञता की चर्चा दार्शनिक क्षेत्र की विशिष्ट चर्चा रही है। मुक्ति का जिज्ञासु साधक मोक्ष मार्ग के तत्वों के अन्वेषण में लगा रहता है। प्राचीन काल में सर्वज्ञता का सम्बन्ध मोक्ष के साथ ही था। 'सर्व जानातीति सर्वज्ञः' जो सबको जानता है वह सर्वज्ञ है / मुक्ति के लिए सर्वज्ञ होना आवश्यक है या नहीं इस जिज्ञासा के सन्दर्भ में तथा कैवल्य एवं सर्वज्ञता के विषय में हम अपनी मीमांसा प्रस्तुतं करेगें। मीमांसा दर्शन के अतिरिक्त प्राय: सभी भारतीय दार्शनिकों ने सर्वज्ञता को स्वीकार