________________ अर्हत् की सर्वज्ञता / 59 . होगा ही। अग्नि का स्वभाव जलाने का है अग्नि की शक्ति का कोई प्रतिबन्धक न हो तो वह जलायेगी। इस कारिका के द्वारा सर्वज्ञता होती ही नहीं है इस अत्यन्तायोग का व्यवच्छेद हो गया। सर्वज्ञता होती है यह अवधारणा स्थापित हो जाती है। . बौद्ध दर्शन में भी क्लेशावरण एवं ज्ञेयावरण ये दो आवरण माने है / हीनयान शाखा के अनुसार मात्र क्लेश का नाश हो जाने से मुक्ति हो जाती है जबकि महायान के अनुसार मुक्ति के लिए क्लेश एवं आवरण का क्षय होना आवश्यक है। सांख्य दर्शन में मुक्ति के लिए विवेक ख्याति होनी आवश्यक है सर्वज्ञता होनी आवश्यक नहीं किन्तु जैन के अनुसार दोष और आवरण दोनों के नाश होने से ही मुक्ति संभव है। अन्यथा मुक्ति नहीं हो सकती। ___ सर्वज्ञता होती है यह अवधारणा स्थापित हो गयी तब प्रश्न हुआ वह सर्वज्ञता कही पर सम्भव हो सकती है। किन्तु किसी व्यक्ति विशेष में नहीं हो सकती इस अयोग रूप शंका का व्यवच्छेद करते हुये आचार्य समन्तभद्र ने कहा है 'सूक्ष्मान्तरितदूरार्थाः प्रत्यक्षाः कस्यचिद्यथा। अनुमेयत्वतोऽग्न्यादिरिति सर्वज्ञासंस्थितिः // ' ___ आप्तमीमांसा श्लोक 5 ____इस कारिका के द्वारा किया। सूक्ष्म, अन्तरित एवं दूरवर्ती पदार्थ किसी पुरुष के लिए प्रत्यक्ष होते हैं क्योंकि वे पदार्थ अनुमेय हैं जो पदार्थ अनुमेय होते हैं वे किसी के प्रत्यक्ष के विषय भी होते हैं / जैसे हम पर्वत पर स्थित अग्नि को अनुमान से जानते है परन्तु पर्वत पर स्थित पुरुष उसे प्रत्यक्ष से जानता है अत: इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जो किसी के लिए अनुमान के विषय होते हैं वे किसी के प्रत्यक्ष के विषय भी होते है अत: सूक्ष्म, दूरवर्ती पदार्थ हमारे अनुमान के विषय हैं अत: वे किसी न किसी के प्रत्यक्ष के विषय भी होंगे। जो इनको प्रत्यक्ष से जानता है वह सर्वज्ञ है / क्रमश: सर्वज्ञता को सिद्ध करते हुए आचार्य कहते हैं स त्वमेवासि निर्दोषो युक्तिशास्त्राविरोधिवाक् / अविरोधो यदिष्टं ते प्रसिद्धेन न बाध्यते / __ आप्तमीमांसा श्लोक-६ हे भगवान् ! वह सर्वज्ञ आप ही है क्योंकि आपके वचन युक्ति आगम के अविरुद्ध है। अर्हत् के द्वारा अभिमत तत्त्वों में किसी भी प्रमाण से कोई बाधा नहीं आ सकती