SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 54 / आर्हती-दृष्टि की सिद्धि करती है। पातञ्जल योग दर्शन में भी जीव की अमर रहने की इच्छा का निरूपण है ‘मा भूवं मा भूयासम्' कोई भी प्राणी यह नहीं चाहता कि मैं नहीं था और नहोऊँ / वह यही चाहता है मैं था और हमेशा रहंगा / इस प्रकार की भावना छोटे-से-छोटे जातमात्र कीड़े में भी होती है / जीव स्वहित के लिए प्रवृति एवं अहित से निवृत्ति करते हैं। उनकी यह चेष्टा उनके जीवत्व को सूचित करती है। जिन पदार्थों में सुख दुःख का संवेदन नहीं होता अपने हिताहित के लिए प्रवृत्ति निवृत्ति नहीं होती, जिनमें उपयोग लक्षण नहीं है वे अजीव हैं अचेतन हैं / ____ आत्मा का नैश्चयिक लक्षण चेतना है वह न्यूनाधिक रूप में सम्पूर्ण जीवों में होती है। कर्मों के आवरण के कारण जीवों में चेतना सर्वथा आवृत्त नहीं हो सकती / उसका अक्षर के अनन्तवे भाग जितना अंश सदैव उद्घाटित रहता है, अक्खरस्स अणंततमो भागो निच्चुग्घाडियो हवइ' अन्यथा जीव अजीव में ही परिणत हो जाता है। तत्त्वार्थ सूत्र में औदयिक अदि पांच भावों को जीव का स्वरूप बताया गया'औपशमिकक्षायिकभावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ. च।' औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक एवं पारिणामिक भाव के आधार पर जीव अपने व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व का निर्माण करता है। पांच भाव जीव के व्यक्तित्व निर्धारण के पेरामीटर हैं / व्यक्ति क्यों है? कैसा है ? इत्यादि प्रश्नों का समाधान इन भावों के आधार पर ही किया जा सकता है। भाव जीव की पहचान के मुख्य एवं महत्त्वपूर्ण घटक तत्त्व हैं। इन भावों के आधार पर व्यक्ति की भौतिक, मनोवैज्ञानिक, चैतसिक एवं आत्मिक अवस्थिति की व्याख्या की जा सकती है। उसके शरीर का आकार-प्रकार, बुद्धि की सामान्यता एवं विशिष्टता, संवेगों की बहुलता एवं न्यूनता, विचारों की पवित्रता या अपवित्रता आदि तथ्यों का संज्ञान पांच भावों के आधार पर करना दार्शनिक एवं विज्ञान जगत् के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकता है। खाना, पीना, सोना, उठना, निद्रा, भय, प्रजनन वृद्धि क्षत-संरोहण ये जीव के व्यावहारिक लक्षण है / बॉयोलोजी में कोशिका के लक्षण दिये गये-वृद्धि, चयापचय, प्रजनन और संवेदना ये लक्षण ही जीव और अजीव की भेदरेखा है। उपर्युक्त लक्षण अजीव में नहीं पाए जाते / एक मशीन खा सकती है किन्तु उसके शरीर में वृद्धि नहीं हो सकती। मशीन को चलाने के लिए पैट्रोल ईंधन आदि दिये जाते हैं। उससे वह चलती तो रहती है किन्तु उस आहार का सात्मीकरण नहीं कर सकती / जीव पदार्थ अपने आहार का ग्रहण, परिणमन एवं उत्सर्ग आहार पर्याप्ति के द्वारा कर लेता है। यह सामर्थ्य जीव में ही है अजीव में नहीं / सजीव पदार्थ ही अपने द्वारा गृहीत आहार
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy