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________________ जीव की पहचान संसार जड़ और चेतन, सजीव और निर्जीव इन दो तत्त्वों से परिपूर्ण हैं / लोक का कोई भी स्थान ऐसा नहीं है जहां ये दो तत्त्व उपलब्ध न होते हों। जड़ और चेतन की भेद रेखा क्या है ? किस लक्षणवाले को जीव कहा जाये तथा अजीव पदार्थ का लक्षण क्या है ? यह प्रश्न मस्तिष्क में आंदोलित होता रहता है। ____ भारतीय दार्शनिकों ने जीव के स्वरूप को व्याख्यायित करने का प्रयत्न किया। चार्वाक् इतर सारे भारतीय दर्शन आत्मवादी हैं। अतएव उन्होंने अपने चिन्तन के . . अनुसार इसकी व्याख्या की है। सांख्य दर्शन आत्मा को नित्य निष्क्रिय, सर्वगत एवं चिद्स्वरूप मानता है। अमूर्तश्चेतनो भोगी नित्यः सर्वगतोऽक्रियः / अकर्ता निर्गुणः सूक्ष्मः आत्मा कापिलदर्शने // मांख्य जीव को कर्त्ता नहीं मानता, फल भोक्ता मानता है। उसके अनुसार कर्तृत्व शक्ति प्रकृति में है। - न्याय वैशेषिकों के अनुसार आत्मा नित्य एवं विभु है / सुख, दुःख, बुद्धि, द्वेष इत्यादि उसके लिङ्ग हैं / इच्छाद्वेषप्रयलसुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिङ्गम् / ' वे ज्ञान को आत्मा का स्वाभाविक गुण नहीं मानते किन्तु आगत गुण मानते हैं अतएव उनकी आत्मा मुक्ति अवस्था में जड़ रूप बन जाती है। बौद्ध के अनुसार आत्मा स्थायी एवं नित्य नहीं है। चेतना का प्रवाहमात्र है। अतएव बौद्ध अपने आपको अनात्मवादी कहते हैं / ___वेदान्त के अनुसार आत्मा (ब्रह्म) एक है किन्तु देहादि उपाधियों के कारण नाना प्रतीत होती हैं। ब्रह्मबिन्दु उपनिषद् में कहा गया ‘एक एव हि भूतात्मा भूते भूते व्यस्थितः' इस प्रकार वेदान्त दर्शन एकात्मवादी है / इसके विपरीत वेदान्त का ही एक अंग विशिष्टाद्वैत जीवों की संख्या अनन्त तथा उन सबका स्वतन्त्र अस्तित्व मानता मीमांसक भी आत्मा को नित्य मानता है किन्तु अवस्था भेदकृत भेद भी उसे मान्य है।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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