________________ आत्मा की देह-परिमितता / 49 यत्रैव यो दृष्टगुणः स तत्र कुम्भादिवत् निष्प्रतिपक्षमेतत्। .. * तथापि देहाद् बहिरात्मतत्वमतत्त्ववादोपहताः पठन्ति / / - जिस पदार्थ के गुण जहां उपलब्ध होते हैं वह पदार्थ वहीं होता है, अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता / आत्मा के ज्ञान आदि गुण शरीर में उपलब्ध हैं अतः आत्मा शरीर-व्यापी ही है, विभु नहीं है / आत्मा के शरीर परिमाणत्व को प्रस्तुत करते हुए आचार्य मल्लिषेण ने स्याद्वादमञ्जरी में कहा है-'आत्मा सर्वगतो न भवति, सर्वत्र तद्गुणानुपलब्धेः यो यः सर्वत्रानुपलभ्यमानगुणः स स सर्वगतो न भवति, यथा घटः तथा चायम् तस्मात् तथा व्यतिरेके व्योमादि।' इस प्रकार जैन दार्शनिकों ने एक स्वर से आत्मा के देह परिमाणत्व को स्वीकृति दी है तथा उसके व्यापकत्व का निराकरण किया है। विशेषावश्यक भाष्य में आत्मा के देह परिमाणत्व को सिद्ध करनेवाली युक्तियों का उल्लेख है। आत्मा कार्मण शरीर की सहायता से संकोच-विकोच स्वभाववाला होने के कारण ही देह परिमाण है। संकोच-विकोच के कारण ही एक ही आत्मा हाथी के शरीरवाली एवं कुंथु के शरीर जितनी सीमित भी हो जाती है / आत्मा के इस संकोच-विकोच को भगवती में दीपक के उदाहरण से स्पष्ट किया है। दीपक को यदि खले आकाश में रखा जाता है तो उसका प्रकाश विस्तृत हो जाता है। उसी दीपक को यदि कमरे में ढकनी के नीचे रखा जाता है तो उसका प्रकाशं सीमित हो जाता है / इसी प्रकार कार्मण शरीर के आवरण से आत्मा में संकोच विस्तार होता रहता है। जो आत्मा बालक के शरीर में रहती है वही युवा तथा वृद्ध शरीर में रहती है। कार्मण शरीर के कारण उसमें संकोच-विकोच सम्भव है। पाश्चात्य मत में आत्मा का परिमाण - आत्या के परिमाण के बारे में पाश्चात्य दार्शनिकों ने भी विचार किया है। प्लेटो के अनुसार जीवात्मा का स्थान प्राणियों का शरीर है / उन्होंने आत्मा को कई भागों में विभक्त किया है—बौद्धिक, अबौद्धिक कुलीन तथा अकुलीन / उनके अनुसार आत्मा के विभिन्न भाग शरीर के विभिन्न भागों में स्थित है / बौद्धिक आत्मा का स्थान सिर है। अबौद्धिक कुलीन आत्मा का स्थान छाती है तथा अबौद्धिक अकुलीन आत्मा का स्थान शरीर का निचला भाग है / आधुनिक दार्शनिक रेने देकार्ते ने आत्मा का स्थान मस्तिष्क के अग्र भाग में स्थित पीनियल ग्रन्थि को माना है। शरीर में आत्मप्रदेशों की सघनता आत्मा शरीर-व्यापी है फिर भी उसके कुछ विशिष्ट स्थान हैं जहां आत्म-प्रदेश सघनता से रहता है, जिनको मर्म स्थान कहा जाता है। 'बहुभिरात्मप्रदेशैरधिष्ठिता