________________ आत्मा एवं पुनर्जन्म / 43 पुनर्जन्म के हेतु . भारतीय चिन्तन के अनुसार कर्म पुनर्जन्म का मूल है / अनिगृहीत क्रोध, मान, माया एवं लोभ आदि कषाय पुनर्जन्म के मूल को सिंचन देते हैं—'सिंचति मूलाई पुणभवस्स।' माया और प्रमाद के कारण भी व्यक्ति पुनः ‘जन्म-मरण करता है माई पमाई पुणरेइ गब्भ' आचारांग का यह शाश्वत उद्घोष है। प्रमादी कषायी व्यक्ति बार-बार संसार चक्र में घूमता है-'पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननी जठरे शयनं / ' पुनर्जन्म को समाप्त करने के लिए कर्मदल को नष्ट करना आवश्यक है। पूर्वजन्म स्मृति के हेतु ___ कुछ मनुष्यों को पूर्वजन्म की स्मृति जन्मजात होती है। सुश्रुत संहिता में कहा गया है कि पूर्वजन्म में शास्त्राभ्यास के द्वारा भावित अन्तःकरण वाले मनुष्य को पूर्वजन्म की स्मृति हो जाती है भावितः पूर्वदेहेषु सततं शास्त्रबुद्धयः / भवन्ति सत्त्वभूयिष्ठाः पूर्वजातिस्मरा नराः / / ... कुछ व्यक्तियों को पूर्वजन्म की स्मृति जन्मजात नहीं होती लेकिन निमित्त मिलने पर उबुद्ध हो जाती है / आचारांग भाष्य में पूर्वजन्म स्मृति के कुछ कारणों का निर्देश प्राप्त है—(१) मोहनीय कर्म का उपशम, (2) अध्यवसान शुद्धि, (3) ईहापोह, मार्गणा, गवेषणा करना। (1) उपशान्त मोहनीय—मोहनीय कर्म के विशिष्ट प्रकार के उपशम से भी जाति-स्मृति पैदा हो जाती है / उत्तराध्ययन के नमिपवज्जा अध्ययन में इसका उल्लेख है। ‘उवसंतमोहणिज्जो सरई पोराणियं जाई' उसका मोह उपशान्त था जिससे उसे पूर्वजन्म की स्मृति हुई। (2) अध्यवसान शुद्धि-मृगापुत्र को साधु देखकर जाति स्मृति प्राप्त हुई / उस समय उसका मोह उपशान्त एवं अध्यवसाय शुद्ध थे। साहुस्स दरिसणेण तस्स अन्झवसाणम्मि सोहणे। मोहंगयस्स संतस्स जाइसरणं समुप्पन्नं / / साधु के दर्शन और अध्यवसाय पवित्र होने पर मैने ऐसा कहीं देखा है इस विषय में यह सम्मोहित हो गया, चित्तवृत्ति सघन रूप में एकाग्र हो गई।